अब नहीं रहे “नेताजी” धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव…


..और इलाज के दौरान 82 साल की उम्र में हुआ निधन
नेताजी ने मेदांता अस्‍पताल में ली अंतिम सांस
बलिया। समाजवादी पार्टी के संस्‍थापक और पूर्व मुख्‍यमंत्री मुलायम सिंह यादव का निधन सोमवार को सुबह हो गया है। पिछले 10 दिन से मेदांता अस्‍पताल में जिंदगी और मौत के बीच जूझने के बाद नेताजी ने अंतिम सांस ली। नेताजी ने 82 साल की उम्र में मेदांता अस्‍पताल में सुबह 8:16 बजे ली अंतिम सांस। समाजवादी पार्टी के संस्‍थापक और तीन बार उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे मुलायम सिंह यादव अब नहीं रहे। पिछले 10 दिन से मेदांता के आईसीयू और क्रिटिकल केयर यूनिट (सीसीयू) में जीवन और मौत के बीच जूझते रहने के बाद नेताजी ने सोमवार सुबह 8:16 बजे अंतिम सांस ली। नेताजी को यूरिन संक्रमण, ब्‍लड प्रेशर की दिक्‍कत और सांस लेने में तकलीफ की वजह से दो अक्‍टूबर को मेदांता अस्‍पताल में भर्ती कराया गया था। तभी से उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी।

मुलायम सिंह यादव के निधन से देश भर में उनके समर्थकों और पार्टी लाइन से ऊपर उठकर विभिन्‍न राजनीतिक विचारधाराओं से जुड़कर काम करने वाले राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ताओं में शोक की लहर है। पिछले कई दिनों से मुलायम सिंह की सेहत को लेकर देश भर में चिंता जताई जा रही थी।
मुलायम सिंह यादव के पुत्र और यूपी के पूर्व मुख्‍यमंत्री अखिलेश यादव ने भी ट्वीट के जरिए नेताजी के निधन की पुष्टि की है। अखिलेश ने अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल पर लिखा- ‘मेरे आदरणीय पिताजी नहीं रहे।’ मुलायम सिंह यादव के निधन की सूचना मिलते ही मेदांता अस्‍पताल पर उनके समर्थकों, परिवार के नजदीकी लोगों और राजनीतिक नेताओं-कार्यकर्ताओं की भीड़ जुटने लगी है। बड़ी संख्‍या में आ रहे लोगों को देखते हुए अस्‍पताल पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है।

पिछले कई दिनों से मुलायम सिंह की सेहत को लेकर देश भर में चिंता जताई जा रही थी। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी और सीएम योगी आदित्‍यनाथ सहित देश की तमाम राजनीतिक हस्तियां लगातार उनकी सेहत का हाल ले रही थीं। मुलायम सिंह यादव 22 अगस्‍त से मेदांता अस्‍पताल में भर्ती थे। मुलायम 1967 में पहली बार विधायक बने थे। वह आठ बार विधायक और 7 बार सांसद रहे। तीन बार यूपी के मुख्‍यमंत्री और दो बार केंद्र में मंत्री रहे। देश के रक्षा मंत्री रहते मुलायम सिंह यादव ने सीमा पर जाकर सेना का दिल जीत लिया था। मुलायम सिंह सैफई से सत्‍ता के शिखर तक का सफर बड़े ही संघर्षों के साथ तय किया था।

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