कर्मचारी-शिक्षक करें शतप्रतिशत मतदान, ओपीएस की बात करने वाले को दें अपना समर्थन

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यूपी में “वोट फाॅर ओपीएस” मुहिम के कारण राजस्थान में बहाल हुई पुरानी पेंशन

राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने की प्रेसवार्ता

बलिया। राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के प्रदेश अध्यक्ष हरिकिशोर तिवारी ने कहा कि इस चुनाव में शत प्रतिशत कर्मचारी व शिक्षक जरूर मतदान करें। उन्होंने अपील किया कि “ओपीएस” की बात जो करे, उसको वोट व अपना समर्थन देकर ताकतवर बनाएं।
प्रदेश अध्यक्ष श्री तिवारी आज़मगढ़ मंडल के भ्रमण कार्यक्रम के तहत बलिया पहुंचे थे। उन्होंने पीडब्ल्यूडी में डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ कार्यालय में समस्त कर्मचारी संगठनों के साथ बैठक करने के बाद प्रेस प्रतिनिधियों के साथ वार्ता की। कहा कि हमारे कर्मचारी -शिक्षक समाज की एक बड़ी समस्या पुरानी पेंशन व्यवस्था पुनः बहाल करने की रही है। यह व्यवस्था अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही थी। जब कर्मचारी- शिक्षक 30-40 वर्ष नौकरी कर लेता है, तब बुढ़ापा ठीक से कटे, इसलिए उसे एक निश्चित धनराशि प्रतिमाह मिल जाती थी। उसी से उसका कुशलतापूर्वक जीवनयापन हो सकता है। लेकिन, संगठन के काफी प्रयास के बाद भी सरकार ने ओपीएस बहाली पर गंभीरता से नहीं सोचा।
कहा कि सरकार की ओर से पिछले 18 महीने से एस्मा लगाया गया है। हम कर्मचारियों के वेतन का पैसा काटकर शेयर मार्केट में लगाया जा रहा है। इसलिए हमने निर्णय लिया है कि जो पुरानी पेंशन की बात करेगा, उसके साथ कर्मचारी रहेंगे। हमने सभी पार्टी से बात की, पर किसी ने ओपीएस को अपनी घोषणा पत्र में नहीं डाला। लेकिन, सपा मुखिया अखिलेश यादव से बात की गई तो उन्होंने ब्यूरोक्रेट तथा वित्त के अधिकारियों के साथ कर्मचारी नेताओं की बैठक की और वित्तीय भार की स्थिति का आंकलन करने के बाद पुरानी पेंशन योजना को पूर्व की भाँति लागू की घोषणा कर दी। इसलिए हम सबने यह निर्णय लिया है कि जो सीना ठोककर ओपीएस की बात की है, उसके साथ कर्मचारी एकजुट होकर रहेंगे। श्री तिवारी ने आगे कहा, इस संबंध में माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी स्पष्ट कहा है कि पेंशन कोई भीख नहीं है। यह कार्मिक के निर्धारित वेतन से बचा वेतन ही है। इसी सुरक्षा के कारण बच्चे सरकारी नौकरी को पसंद करते थे। अब 2005 के बाद सरकारों ने इस व्यवस्था को बन्द करके नई पेंशन व्यवस्था लागू कर दी है। सबसे पहले 2003 में तमिलनाडु में, 2004 में राजस्थान में, 2005 में पंजाब एवं यूपी में तथा मध्य प्रदेश, गुजरात, बिहार 2006 में, हरियाणा, कर्नाटक 2008 में, अरुणांचल प्रदेश 2010 में और मिजोरम, जम्मू काश्मीर आदि और अन्त में 2017 में केरल में समाप्त कर दी, परन्तु पश्चिम बंगाल में अभी भी पुरानी पेंशन ही देय है।
उन्होंने कहा कि नई पेंशन योजना में कार्मिक का धन 10 प्रतिशत वेतन से कट जाता और 10 प्रतिशत धन सरकार का अंशदान होता था। उस धन को कारपस फण्ड के रूप में सरकार द्वारा तीन जगह एसबीआई, यूटीआई तथा एलआईसी को दिया जाता था और वे उसे शेयर बाजार में लगाती थी। उससे जो नुकसान या फायदा होता था वह कर्मचारी को भी मिलना तय होता है। एलआईसी द्वारा आईएल एण्ड एफएस में जो धन विगत वर्षों में लगाया गया, वह कर्मचारी सात बार डिफाल्टर घोषित हो चुकी है। विगत 2005 से 2013 तक जब इसका परिणाम सामने आया तो ज्ञात हुआ कि न तो इस प्रकार के खाते ही खुल पाये और न ही कार्मिक का अंश ही काटा गया और ना ही सरकारी अंश ही डाला गया। यह बातें सूचना के अधिकार तथा विधानसभा में प्रस्तुत महालेखाकार के रिपोर्ट में सामने आई, तब 2013 से आन्दोलन शुरू हुए। दिसम्बर, 2013 में अखिलेश सरकार के विरूद्ध 11 दिन की बड़ी हड़ताल हुई। फिर 2015 में, और फिर 2018 में पुरानी पेंशन के एक सिर्फ मुद्दे पर पुरानी पेंशन बहाली मंच के तहत सभी कर्मचारी-शिक्षकों-अधिकारियों ने मिलकर आन्दोलन किया। तब योगी आदित्यनाथ जी तथा तत्कालीन मुख्य सचिव अनूपचंद्र पाण्डेय जी सहित सात शीर्ष अधिकारियों की एक समिति, जिसमें दो कर्मचारी, शिक्षक नेताओं को हरिकिशोर तिवारी एवं दिनेश चन्द्र शर्मा को भी रखकर दो माह में रिपोर्ट देने के निर्देश दिए गए। परन्तु कई बैठकों के उठा-पटक के बाद भी निर्णय नहीं हुआ। इसी क्रम में 2018 तथा 2022 में लाखों कर्मचारी-शिक्षक द्वारा लखनऊ के यूको गार्डन में विशाल महारैली का आयोजन किया गया। जिसमें सरकार को मुद्दे का अंदाजा तो लगा लेकिन अधिकारी नहीं माने। इस बीच कर्मचारी नेताओं को दिल्ली ले जाया गया और 10 प्रतिशत सरकारी अंश की जगह 14 प्रतिशत सरकारी अंश की घोषणा कर दी, जबकि कर्मचारी नेता पुरानी बहाली पर ही अड़े थे। सपा मुखिया की घोषणा के बाद भी सरकार के मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी यह बयान देते रहे कि नई पेंशन ज्यादा फायदे देगी। हम कर्मचारी संगठनों का मत है कि अधिक फायदा यदि है तो वह सरकार लेकर विकास योजनाओं में लगा लें। हमें तो पुरानी पेंशन राशि ही दे दे, हम स्वीकार कर लेंगे। जिस योजना के 17 वर्ष बाद भी सरकारें धरातल पर नहीं ला पाईं। उस पर विश्वास अब नहीं किया जायेगा। पुरानी पेंशन बहाली के मोहिम को बल तो तब मिला जब उप्र में चल रहे विधानसभा चुनाव के लोकप्रिय बढ़त दिलाने वाले मुद्दे की गम्भीरता को समझते हुए राजस्थान सरकार ने इसे राजस्थान के शिक्षकों-कर्मचारियों को लागू करके बजट में प्राविधान भी कर दिया। कर्मचारी-शिक्षकों से अपील है कि पश्चिमी क्षेत्र के चुनाव में भागीदारी की तरह ही ‘वोट फाॅर ओ0पी0एस0’ के लिए शत-प्रतिशत मतदान कर अपने राजनैतिक निर्णय की आवाज बुलंद करें।
बैठक में बृजेश सिंह, सुशील त्रिपाठी, सुशील पाण्डेय ‘कान्हजी’, रमाशंकर शर्मा, कामेश्वर सिंह, अरविन्द सिंह, अरविन्द गुप्ता, इं प्रशान्त गुप्ता, इं राहुल सिंह, इं मनीष गुप्ता, इं अमित कुमार, लालबाबू यादव, राकेश मिश्रा, रौशन गुप्ता, धनंजय सिंह, आशुतोष सिंह, शैलेष श्रीवास्तव, अफजल, एलबी शर्मा, संजय कुँवर, करुणेश श्रीवास्तव, मुकेश उपाध्याय, बृजेश कुमार सिंह, मनोज कुशवाहा, अभिषेक सिंह, अरुण ठाकुर, दिलीप श्रीवास्तव, कमलेश तिवारी, रविशंकर गुप्ता, अशोक सिंह, गिरिजेश सिंह, इन्द्रप्रताप सिंह, केके सिंह, विनय प्रकाश, हैदरअली आदि थे। अध्यक्षता सत्या सिंह एवं संचालन संघ के महामंत्री वेद प्रकाश पाण्डेय ने किया।
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