चुनाव, काला धन व इलेक्टरल बांड पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला





बलिया। लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा, कौन नहीं जानता कि चुनाव में अरबों रुपये का काला धन लगता है ? कौन नहीं जानता है सूटकेशों में भर भर के रुपया राजनीतिक पार्टियों को अपने स्वार्थ सिद्धि के लिये दिए जाते हैं ? कौन नहीं जानता की पार्टी कोई भी हो चुनाव प्रचार के लिए काला धन का उपयोग होता ही है ? पहले भी अगर अच्छी कंपनी चंदा देना चाहती थी तो, बड़ी कंपनियों की एक दिक्कत थी कि अगर एक पार्टी को चंदा देते हैं तो दूसरी पार्टी नाराज हो जाएगी। जिससे उनके व्यवसाय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसी से सूटकेस कलचर और नगद के चंदे का प्रचलन राजनीति में खूब बढ़ा। राजनीति में काले धन और नकद के प्रयोग को कम करने के लिए मोदी ने इलेक्टोरल बांड नामक एक प्रयोग किया और बाकायदा सभी दलों की सहमति से संसद में क़ानून पारित कराया।
इलेक्टोरल बांड की योजना में कोई भी इसको नकद नहीं खरीद सकता था। इलेक्टरल bond की योजना में चेक से रिजर्व बैंक आफ इंडिया के माध्यम से ही इलेक्टरल बांड खरीदे जाने थे. जो किसी के भी नाम से जारी नहीं होते थे परंतु इसको भुनाने के लिए राजनीतिक पार्टियों को अपने बैंक खाते में जमा करना आवश्यक था। बड़ी कंपनियों पर आयकर की दर 30% है। अब किसी भी कंपनी को राजनीतिक चंदा देने के लिए अपने एक नंबर के पैसे से जिसकी लागत कम से कम 30% आती है से ही देना था।इलेक्टरल बांड न केवल काले धन का प्रवाह कम किया, बल्कि देने वाली कंपनी पर सरकार को 30% कर भी देने पड़े। पर आदत से लाचार सुप्रीम कोर्ट के कुछ स्वघोषित समाजसेवी और वकीलों ने एक पीआईएल दाखिल किया। कोर्ट ने भी आनन- फानन बिना इलेक्टोरल बांड की मंशा को समझे हुए ही पूरी योजना को ही निरस्त कर दिया। इसका तत्कालिक परिणाम वही है कि पुनः सभी राजनीतिक दल नगद सूटकेस में भर भर कर चंदा लेने लगे हैं। समाचारों के अनुसार प्रतिदिन 100 करोड़ से अधिक का नकद व शराब पुलिस के द्वारा बरामद किया जा रहा है। राजनीतिक क्षेत्र में लगने वाले काले धन की मात्रा का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है।
मेरे अपने विचार से सुप्रीम कोर्ट का इलेक्ट्रॉनिक बंद योजना का निरस्त करना एक ऐतिहासिक भूल है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के स्वविवेक पर बनाए PIL के आधार पर कुछ गिने चुने लोगों के कहने पर कोर्ट द्वारा बार बार चुनी हुई सरकारों के काम में हस्तक्षेप को निश्चित रूप से ही संविधान की मंशा के विपरीत है।
सुप्रीम कोर्ट के एक वकील मैथ्यूज जे नेदूंपरा ने सुप्रीम कोर्ट में इलेक्टोरल बांड पर रिव्यु पेटिशन दाखिल कर कोर्ट में एक महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न खड़ा किया है। श्री मेथ्यूज के अनुसार क्या कोर्ट संसद के अपील प्राधिकरण के रूप में काम करेगी? साथ ही वकील श्री मैथ्यूज ने एक महत्वपूर्ण प्रश्न कोर्ट के समक्ष खड़ा किया है कि क्या ऐसा नहीं हो सकता कि इलेक्टोरल बांड के पक्ष में भी इस देश के ज्यादातर लोग हो ? क्योंकि इलेक्टोरल बांड स्कीम संसद के द्वारा पास हुई थी और चुने हुए सांसद इस देश के लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मैं आशा करता हूं कि सुप्रीम कोर्ट वकील श्री नेदुपारा के electoral बांड रिव्यु पेटिशन पर गंभीरता से विचार कर आवश्यक सुधारों के साथ इलेक्टोरल बांड योजना को पुनः लागू करेगा। जिससे कि संसद की मंशा के अनुरूप धीरे-धीरे राजनीतिक क्षेत्र में सुचिता का निर्माण हो सके.

लेखक -सीए ईश्वरन श्री।।





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