सियासी मैदान: क्या अंबिका चौधरी को मिलेगा अपनों का साथ, सपा में वापसी के आसार..?

अब सपा मुखिया अखिलेश यादव पर टिकी है सबकी नजर …

अखिलानंद तिवारी
बलिया।
फेफना विधानसभा सीट पर दावेदारों की संख्या और बढ़ सकती है। पिछले विस चुनाव में इनकी संख्या कम थी। तकरीबन चार लोगों ने ही दावेदारी की थी। इस बार अंबिका चौधरी के सपा में आने की संभावना प्रबल होने से बहुतों की नींद उड़ गई है। सबकी नजर सपा मुखिया पर टिकी है। हालांकि सपा के पुराने कार्यकर्ताओं की ओपिनियन अंबिका चौधरी के पक्ष में है। लोग उन्हें सपा में लाना चाहते हैं। अंदरखाने यह भी चर्चा है कि सबकुछ ओके है, केवल राष्ट्रीय अध्यक्ष के हरी झंडी का इंतजार है।
पूर्व के कोपाचीट एवं वर्तमान के फेफना विधानसभा से वर्ष 1993 से लेकर 2007 तक लगातार विधायक रहे अंबिका चौधरी सपा सरकार में अहम जिम्मेदारी निभा चुके हैं। पिछले विस चुनाव में टिकट न दिए जाने से अंबिका चौधरी ने मजबूर होकर बसपा का दामन थामा था। हालांकि पार्टी बदलने से अंबिका चौधरी को कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन सपा को इसका नुकसान जरूर उठाना पड़ा। वर्ष 1992 में समाजवादी पार्टी की शुरूआत से ही पार्टी के अभिन्न अंग रहे अंबिका चौधरी मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव के बेहद करीबी रहे हैं। मुलायम सिंह यादव की सरकार में श्री चौधरी ने राजस्व मंत्री की जिम्मेदारी संभाली ही, कई मौकों पर मुखयमंत्री के प्रतिनिधि के तौर पर देश और विदेश के विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा भी लिया। हमेशा सदन में अंबिका चौधरी दल की तरफ से वक्ता भी रहे। पार्टी में उनकी ताकत और अहमियत को सभी जानते हैं। क्योंकि वर्ष २०१२ का चुनाव हारने के बाद भी उन्हें विधान परिषद सदस्य बनाने के साथ ही अखिलेश यादव के मंत्रीमंडल में राजस्व मंत्रालय की अहम भूमिका सौंपी गई थी। हालांकि कुछ दिनों बास से ही पार्टी नेतृत्व से उनका झटका लगना शुरू हो गया , पहले राजस्व विभाग उनके पास से हटा और विकलांग कल्याण विभाग की जिम्मेदारी दी गई। बाद में पार्टी से बर्खास्त तक कर दिया गया। पिछली बार समाजवादी पार्टी के मुखिया रहे मुलायम सिंह यादव की पार्टी और परिवार में छिड़ी रार के दौरान भी अंबिका चौधरी मुलायम सिंह यादव के साथ खड़े रहे। उन्होंने कहा था जबतक सांस है नेताजी को नहीं छोड़ूंगा। इसके बाद सियासी हलचल तब तेज हुई थी, जब वह बसपा में चले गए।
अब एक बार फिर राजनीति करवट लेती नजर आ रही है। पहले पुत्र ने समाजवादी पार्टी को अपनाया अब पिता का जाना भी लगभग तय माना जा रहा है। सपा के लोग अंबिका चौधरी के घर वापसी की राह देख रहे हैं। फेफना विस में अंबिका चौधरी का इतिहास हमेशा दोहराया जाता रहेगा। उन्होंने पहली बार 1993 में सपा के टिकट पर जनता दल के गौरी भईया को करीब 21 हजार वोटों से हराया था। वर्ष 1996 में भाजपा के सुधीर राय को करीब पंाच हजार वोटों से पराजित किया। वर्ष 2002 में बसपा के सुग्रीव सिंह को करीब नौ हजार वोट से पछाड़ते हुए जीत दर्ज की थी। इसके बाद वर्ष 2007 में भी बसपा उम्मीदवार सुधीर राय को छह हजार वोटों से हराने का काम किया था। वर्ष 2012 के चुनाव में अंबिका चौधरी को हार का मुंह देखना पड़ा। इसकी मुख्य वजह सपा के टिकट से चुनाव मैदान में संग्राम सिंह का आना था। इस बार सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो वक्त आने पर पता चलेगा। इन दिनों सपा में भी गुटबंदी चरम पर है। ऐसे में अंबिका चौधरी के सपा में आने पर क्या अपनों का साथ उन्हें मिलेगा, यह यक्ष प्रश्र अब भी खड़ा है ?

इनसेट…
28 को सपा में शामिल होंगे अंबिका !
फेफना विधानसभा की राजनीति में गर्माहट आने की पूरी उम्मीद है। अभी तक इस विधानसभा से टिकट के दावेदारों में पूर्व विधायक संग्राम यादव के साथ वंशीधर यादव, संतोष भाई, जिलाध्यक्ष राजमंगल यादव प्रमुख रूप से सक्रिय हैं। अब अंबिका चौधरी के बसपा से त्याग पत्र देने और उनके बेटे आनंद चौधरी के सपा में आने के बाद कयासबाजी तेज हो गई है। सपा की राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा जोरों पर है कि अंबिका चौधरी की कभी भी घर वापसी हो सकती है और 28 अगस्त को लखनऊ में उन्हें शामिल किया जा सकता है। हालांकि यह जानकारी अभी तक पार्टी लेबल से पुष्ट नहीं है।

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