विश्वप्रसिद्ध श्रावणी मेला नहीं लगने के कारण आध्यात्मिक राजधानी देवघर के मुख्य द्वार माने जाने वाले जसीडीह स्टेशन पर श्रावण मास के पहले दिन रविवार को वीरानगी देखी गयी। श्रावण मास में बाबानगरी में लगने वाले मेले के कारण पूर्व में चौबीसों घंटे गेरुआ रंग से स्टेशन परिसर पटा रहता था व बोल-बम के नारे चारों ओर गूंजते रहते थे। मगर गत दो वर्षों से स्थिति बिल्कुल उलट रह रही है। हमेशा भीड़ की जगह वीरानगी नजर आ रही है। रेलवे की ओर से जसीडीह स्टेशन पर गत वर्ष से ही श्रद्धालुओं के लिए 100 करोड़ से अधिक राशि खर्च कर सौंदर्यीकरण कार्य कराया गया है। सौंदर्यीकरण के साथ रेलयात्रियों को स्टेशन परिसर में हर तरह की सुख-सुविधा प्रदान कराने की भी कोशिश की गयी है। यात्रियों के लिए जसीडीह स्टेशन को नया लुक देने का भी प्रयास किया गया है। हालांकि सौंदर्यीकरण कार्य के बाद लगभग 2 साल से बाबानगरी में श्रद्धालुओं का आना प्रतिबंधित है। प्राचीनकाल से देश-विदेश से श्रद्धालु गंगाजल लेकर 105 किलोमीटर लंबा रास्ता तय कर श्रावण मास में बाबा वैद्यनाथ को जल अर्पण करने की परंपरा रही है। पूजा के बाद सुगम रास्ता जसीडीह रेल रूट होकर कांवरियों व श्रद्धालुओं की आवाजाही के कारण एक माह में स्टेशन को करोड़ों रुपए की आय भी होती थी। श्रावण मास में रेलवे की ओर से हर रूट से विशेष ट्रेन कांवरियों की सुविधा के लिए प्रदान की जाती थी। वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के कारण गत 2 वर्षों से श्रावणी मेला नहीं लगने के कारण श्रद्धालुओं का आगवामन बंद है। इसकी वजह से रेलवे को भी करोड़ों रुपए की घाटा हो रहा है। बताते चलें कि श्रावणी मेले के दरम्यान जसीडीह स्टेशन को दुल्हन की तरह सजाया जाता था। कोरोना के पूर्व श्रावण मास के पहले दिन से ही जसीडीह स्टेशन समेत बाजार में मेला रहता था। कांवरियों की भीड़ 24 घंटे संपूर्ण क्षेत्र में होती थी। आसपास के बाजारों में रौनक होती थी।
