यूपी विधानसभा चुनाव:पूर्वांचल तय करेगा 2022 में मुकद्दर का सिकंदर

अखिलानंद तिवारी

बलिया। रणभेरी बज उठी है। बस उन तारीखों का ऐलान होना बाकी है, जिनमें युद्ध लोकतांत्रिक तरीके से लड़ा जाएगा। हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव  2022 की। इसमें ऊंट किस करवट बैठेगा यह कह पाना अभी कठिन है। इतना तो तय है कि शुरुआती दौड़ में लड़ाई त्रिकोणीय लग रही है। मुख्य मुकाबले में भाजपा, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ही हैं। दर्जन भर सीटों को छोड़ दीजिए तो कांग्रेस फिलहाल ज्यादातर स्थानों पर वोटकटवा से अधिक की भूमिका में नहीं है। यह भी साफ है कि इस बार पूर्वांचल ही सत्ता की कुर्सी तक किसी को भी ले जाएगा। कह सकते हैं कि जिसने पूर्वांचल जीत लिया वही मुकद्दर का सिकंदर साबित होगा। इस क्षेत्र के राजनीतिक मिजाज की थाह लेने की कोशिश की है *अपना शहर न्यूज डाट काम* ने।  प्रयागराज से वाराणसी जाते समय रास्ते में औराई के पास बस रुकी तो हमहू उतर गए चाय पीने। स्थानीय लोगों की अड़ी जमी थी और चर्चा में था इलेक्शन 2022, हमने पूछा कि इस बार कौन जीतेगा भाई यहां ?  एकबारगी सभी थोड़ा सचेत होने लगे। परिचय पूछा गया तो मैंने बताया कि अखबारी दुनिया से हूं,बस इसीलिए थोड़ी सी जिज्ञासा है। यहां का माहौल जानने की। भोजपुरी मिश्रित हिंदी में उमाशंकर दुबे बोले -भइया अबै त केहू का माहौल नाय दिखात अहय, लेकिन धीमे धीमे जरूर रंग चढ़त अहय। अब देखा न सतीश मिसिर (बसपा महासचिव सतीश चंद्र मिश्र) अयोध्या में राम मंदिर बनवाववै क बात कहत अहयं। जेकर पार्टी का नारा रहा – तिलक तराजू और तलवार मारो इनको जूते चार।  अखिलेश मंदिर मंदिर जात अहयं। मैंने कहा तो क्या भाजपा को जिताओगे?  वह बोले ऐसा नहीं है। हमारी सीट तो तय है कि कहां जाएगी बाकी हम नहीं जानते। हां इतना तय है कि सपा और बसपा के लिए फिलहाल अंडर करंट नहीं है, भाजपा के लिए भी नहीं। साथ बैठे अमित सिंह ने उनको यह कहते हुए टोका-  दद्दा तू  बतावा तू कहां वोट देबा । उमाशंकर ने हंसते हुए कहा कि जहां तोहार वोट जाइ, हमरौ उहीं दबी। अमित ने बताना शुरू किया। बभनवन ( ब्राह्मणों) में यहां 60  प्रतिशत वोट विजय मिसरा का जाइ, 40  प्रतिशत दूसरन के। हां अगर भाजपा वाले कोनव ठीक-ठाक बाभन प्रत्याशी दै दिहिन तो लड़ाई तगड़ी होए। मेरी चाय खत्म हो गई थी बस ड्राइवर भी हार्न बजाने लगा था। फिर सफर शुरू हो गया ।  प्रयागराज से साथ बैठे  प्रतापगढ़ के बबलू सिंह बोले, एक बात तो है कि भाजपा के पास कल्याण सिंह के बाद अब कोई दूसरा ऐसा नेता हुआ है जिसके नाम पर विधानसभा चुनाव में  वोट डलेंगे। मेरी बारी अब चौंकने की थी मैंने कहा ऐसा क्या कर दिया है योगी ने जो उनके नाम पर वोट पड़ेंगे? बबलू का जवाब था माफिया अंदर हैं और कम से कम कोई बड़ा दंगा फसाद नहीं हुआ। कोरोना के मामले में भी योगी सरकार ने केरल और महाराष्ट्र से अच्छा किया है। क्या महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे असर नहीं करेंगे? इस सवाल पर उनका उत्तर था कि असली मुद्दे चुनाव में चलते ही कब हैं?जाति और धर्म ही लड़ते हैं। आप देख लीजिएगा मतदान के दिन तक मामला हिंदू मुस्लिम ही हो जाएगा।  रही बात विकास की तो जितना कुछ पिछले साढ़े चार सालों में हुआ है उतना कभी नहीं हुआ होगा। उन्होंने पूछा आप कुंभ में आए थे क्या? मैंने कहा हां आया था। वह बोले ऐसी व्यवस्था क्या मायावती अथवा अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए हो सकती थी ? अरे योगी तो माघ मेला स्नान पर्व भी हेलीकॉप्टर से फूल बरसवाते हैं हम पर। मुझे लग गया कि बबलू सिंह योगी के मुरीद हैं। मैंने बात को विराम देने के उद्देश्य से कहा कि अरे भाई योगी से ब्राह्मण नाराज हैं। उनका कहना है कि ब्राह्मणों के एनकाउंटर खूब हुए हैं। देखो न कानपुर वाले विकास दुबे को कैसे मारा? बबलू ने प्रति प्रश्न किया अच्छा आप यह बताइए कि विकास दुबे ने कितने ठाकुर, बनिया अथवा सरोज को गोली मारी? मेरे पास जवाब नहीं था। मैंने कहा मुझे नहीं पता तो बबलू ने कहा जो बाभन यह बात कहते हैं उन्हें शायद हकीकत का पता नहीं है। विकास दुबे ने अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणों को ही मारा और मरवाया। मैं समझ गया कि तर्कों पर जब बात होगी तो विपक्ष का यह हथियार बेदम साबित होगा। राबर्ट्सगंज सोनभद्र के धर्मेंद्र पांडेय भी इस सफर में थे और वह बबलू की बात पर सिर हिलाते बोले- बिल्कुल सही बात। उन्होंने बात बढ़ाई। बोले- अपराधी किसी जाति के नहीं होते शिव प्रकाश शुक्ला ने पहला  खून एक ब्राह्मण का ही किया था।  इस संक्षिप्त चर्चा से आप पूर्वांचल में बहने वाली चुनावी हवा का कुछ हद तक अंदाजा लगा सकते हैं। वैसे जातियों में विभाजित वोटर धर्म के नाम पर गोलबंद होंगे? यह कह पाना  अभी सहज नहीं। जातीय वर्चस्व की भावना कहीं न कहीं छिपी जरूर है। जातियों की गोलबंदी ही पूर्वांचल में किसी भी दल की नैया पार लगाएगी। फिलहाल मूवी फुल मोटे तौर पर आप या मान सकते हैं कि दलितों का 50 पिछड़ों का 60 से 70 और सवर्णों का 70 प्रतिशत प्रतिबृद्ध वोटर भाजपा से अलग नहीं हुआ है। चंद लोग चाहे जो बयान दें। इसीलिए योगी आदित्यनाथ निश्चिंत दिखाई देते हैं। समाजवादी पार्टी के कोर वोटर है यादव और मुसलमान। इस पार्टी के प्रत्याशी तब तक सफल नहीं हो सकते जब तक की सवर्णों दलितों और पिछड़ों के 50 प्रतिशत वोट न झटके। वैसे दलितों का बहुसंख्यक वर्ग अभी भी बहुजन समाज पार्टी के साथ खड़ा है लेकिन वह किसी भी प्रत्याशी के साथ चला जाएगा, ऐसा लगता नहीं। पूर्वांचल उत्तर प्रदेश विधानसभा में 156 विधायकों को भेजता है। इसके तीन भाग माने जा सकते हैं- पश्चिम में पूर्वी अवध क्षेत्र, पूर्व में पश्चिमी-भोजपुरी क्षेत्र और उत्तर में नेपाल क्षेत्र।  वाराणसी से सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का औरा भी काम करता है यहां। पिछले विधानसभा चुनाव में एक पत्रकार ने भविष्यवाणी की थी कि वाराणसी की आठ विधानसभा सीटों में भाजपा एक ही सीट जीत पाएगी लेकिन हुआ अप्रत्याशित। नरेंद्र मोदी के तीन रोड शो ने बाजी  पलट दी। पॉलिटिकल पंडित भी थाह नहीं ले पाए थे इसका प्रभाव। खैर यह बात पुरानी हो गई है। नई बात यह है कि इस बार वैसा नहीं होगा। दरअसल काठ की हांडी हमेशा नहीं चढ़ती। राजनीति में एक भूल भारी पड़ती है बहुत भारी पड़ती है। यह भूल कौन करता है, इसका इंतजार कीजिए।*****

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