आचार्य सुनील भारद्वाज
बलिया। थाना परिसर में करीब तीन दशक पहले तत्कालीन थानाध्यक्ष द्वारा स्वयं बैठने के लिए गुंबद नुमा हवादार कमरा बनवाया गया था,जानकार कहते है कि वे कमरे में बैठने के दूसरे दिन ही सस्पेंड हो गए तब से कोई पुलिसकर्मी उस कमरे में बैठने की हिम्मत नहीं जुटा सका।लेकिन सभी भ्रांतियों पर थानाध्यक्ष का हौसला भारी पड़ा, हल्दी थानाध्यक्ष ने पुलिस अधीक्षक से अनुमति प्राप्त कर सोमवार को उस कमरे को तोड़वा दिया।
सन्1981 में तत्कालीन थानाध्यक्ष के सस्पेंड हो जाने के बाद से ही वह कमरा बंद रहने लगा, कार्यालय के सामने व हवादार होने के बावजूद कोई उसमें जाता नहीं था।हालांकि थाने के मुख्य द्वार व कार्यालय के बीच यह कमरा होने के कारण पुलिसकर्मियों को काफी असुविधा भी होता था।इसको लेकर पुलिसकर्मियों में कई भ्रांतियां थी,कोई उसे भूतहा कमरा बताता कोई वहां जिन होने का दावा करता रहा। इसी बीच 2008 में थानाध्यक्ष के रुप अभय सिंह ने चार्ज लिया।उन्हें कुछ आभास हुआ तो वे किसी मौलवी से मिले और उन्हीं के कहने से वहां चादर चढ़ाई व मुर्गा छोड़ दिया, उनके बाद वाले थानाध्यक्ष ने थाना परिसर में मुर्गा के बावत पुलिसकर्मियों से पूछा, जब पता चला कि मौलवी के कहने से छोड़ा मुर्गा छोड़ा गया है तो उसने एक मुर्गी छोड़ दिया।देखते ही देखते थाना परिसर में दर्जन भर मुर्गे हो गए।उसके बाद जो थानाध्यक्ष आये वे बारी-बारी सब मुर्गे खा गए।हालांकि उस घटना के बाद भी पुलिसकर्मियों में इसको लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां सुनने में आता रहा।उसके पीछे कुछ भी राज या भ्रांतियां हो, लेकिन थानाध्यक्ष राजकुमार सिंह ने उस गुंबद नुमा कमरा को जेसीबी मशीन से तुड़वा दिया।थानाध्यक्ष आर.के. सिंह ने बताया कि पुलिस अधीक्षक से अनुमति प्राप्त कर गुंबज को ध्वस्त करा दिया गया। खंडहर हो चुके गुंबदनुमा कमरे से थाना परिसर का प्रशासनिक भवन पूरी तरह से ढक गया था। जिससे सड़क से थाना कार्यालय दिखाई नहीं देता था। आज इस थाने के बारे में व्याप्त सालों साल की भ्रान्तियों और फैलाई गई गुंबद के बारे में डरावनी बातों को मैंने भी सुना है।