कटान का मंजर और दर्द देखना है तो गाजीपुर जनपद के इस गांव में पहुंचे….

गाजीपुर। वो जुलाई का महीना सैकड़ों परिवारों के लिए तबाही का मंजर लेकर आया था, जिसकी कभी हमने कल्पना तक नहीं की थी, पल भर में बचपन की यादें यू बिखर जाएंगी। हंसता-खेलता गांव उजड़ जाएगा। शायद विधाता को यही मंजूर था। गंगा की उफान मारती लहरों ने ऐसा कहर बरपाया कि सैकड़ों परिवार पल भर में बेघर हो गए। उनके सामने सिर छुपाकर रहने के लिए जगह तक नहीं बची। गंगा का बढ़ता जलस्तर सड़क किनारे रह रहे विस्थापित ग्रामीणों के पुराने जख्म हरे हाेने लगे हैं। 


आज से करीब 8 साल पहले वर्ष 2013 में घटी हृदय विदारक घटना का जिक्र आते ही सब आंखों के सामने ताबही का मंजर घूमने लगता है। गंगा की लहरों ने पहले खेतों को निगला, फिर घरों को अपने आगोश में लेना शुरू किया। कुछ ही घंटों में देखते-देखते कई घर नदी की गोद में समा गए। आंखों के सामने पुस्तैनी घर, जहां हम सभी का बचपन बीता था, गंगा के आगोश में समा गया। जिस धरती पर जन्म लेकर परिवार ही नहीं बल्कि समाज में अलग पहचान बनाई थी, पल भर में गंगा के गर्भ में विलीन हो गई।


फाइल फोटो

गंगा किनारे बसे इस गांव के लोगों ने सोचा भी नहीं था कि जिस गंगा की गोद में बचपन अटखेलियां लेते गुजरा है, उसी गंगा की लहरें हमारा आशियाना समा ले जाएंगी। नियमित रूप से सुबह और शाम नदी में घंटों नहाते बीतता था। नदी के किनारे बगीचा, जिसमें विशालकाय पेड़ भी थे, सब धीरे धीरे करके नदी में समाते गए। यह सिर्फ सुना था कि प्रकृति के आगे किसी की नहीं चलती, लेकिन वर्ष 2013 की बाढ़ में देख भी लिया। एक महीने के भीतर नदी ने ऐसा रौद्र रूप धारण किया कि विशालकाय पेड़ मिनटों में नदी की गोद में समा गए। नदी के गर्भ में समाने के बाद के बाद वो विशालकाय पेड़ कहां गए, कुछ पता ही नहीं चल सका। सभी स्तब्ध होकर देखते ही रह गए।

फाइल फोटो

गंगा की लहरों में एक-एक कर खेत, खलिहान, बाग बगीचे समा रहे थे। फिर भी हिम्मत हारने को कोई तैयार नहीं था, परिवार के मुखिया से लेकर बच्चे सभी डटे थे। जिनका बचपन था तो वह थोड़ा बहुत समझ रहे थे, लेकिन उन बुजुर्गों पर क्या बीत रही थी, जिन्होंने बचपन से लेकर जवानी और अब बुढ़ापा यहां गुजार दिया था। अपनी मिट्टी से बिछुड़ने का दर्द उन्हें ज्यादा था। उधर, गंगा की लहरें आक्रामक हो रही थी, वहीं आंखों के सामने घटित होते हुए तबाही के मंजर को देखकर आंखें भी नहीं रो रहीं थी, क्यों कि डर था कहीं पानी ज्यादा न हो जाए। देखते ही देखते गांव के सैकड़ों घर नदी में समा गए, जिनके पास जमीन नहीं थी, उन्होंने सड़क किनारे ही डेरा डाल दिया, कुछ लोगों ने अपने खेतों में आशियाना बसा लिया।


फाइल फोटो

नाते रिश्तेदारों का समर्पण हर दिन हर पल नदी को अपने गांव-घर के नजदीक आते देख रहे थे। हमारे नाते रिश्तेदार भी पल-पल की खबर ले रहे थे। उस विषम परिस्थितियाें में रिश्तों की अहमियत समझ में आई। रिश्तेदार साथ रहकर न सिर्फ हौसला बढ़ा रहे थे बल्कि पग पग पर मदद कर रहे थे। कुछ ऐसे रिश्तेदार थे, जो उम्मीद से बढ़कर मदद में जुटे थे। उन्होंने दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा। कुछ ऐसे रिश्तेदार भी थे, जिनका एक साथ कई घरों से नाता जुड़ गया था। उन्होंने बाखूबी अपनी जिम्मेदारी निभाई, तब उनकी अहमियत सभी के समझ में आई। उनका समर्पण और सहयोग मिसाल बन गया।

म्मीद : कोई तो गंगा पुत्र आएगा जो करेगा उद्धार

वर्ष 2013 के बाढ़ और गंगा के कटान में शिवराय का पुरा के सैकड़ों बेघर परिवार सड़कों पर जीवन जीने को विवश हैं। आज तक उनका पुनर्वास नहीं हो सका। यहां के लोग राजनीति का शिकार होते आए हैं। आज भी न जाने कितने परिवार सड़क के किनारे गृहस्थी लेकर उद्धारक की बाट जोह रहे हैं। इस उम्मीद से बैठे हैं कि कोई तो गंगा पुत्र मदद के लिए आगे आएगा।

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