मंहगाई से जंग, आम आदमी तंग..

.
.

.
.
.
आखिर महंगाई से कब तक लड़ेगा आम आदमी, आसमान छू रहे सब्जी व खाद्यान्न के दाम

बलिया। कोरोना महामारी से जूझ रहे आम आदमी की जिंदगी अभी पूरी तरह पटरी पर नहीं आ पाई कि प्रकृति के प्रकोप ने उन्हें ग्रस लिया। लोग महंगाई से लड़ने के लिए मजबूर हैं।
.

.
देखा जाए तो बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि ने एक तरफ किसानों के सामने भुखमरी पैदा कर दी है, तो दूसरी तरफ यह महंगाई को बढ़ाने में भी सहायक सिद्ध हो रहे है। इससे खेती की उपज काफी घट गई है। ऐसे में सब्जी से लेकर खाद्यान्न एवं अन्य वस्तुओं को अधिक कीमत देकर बाहर से मंगवाना पड़ रहा है। इस बीच सरकार ने पेट्रोल और डीजल के दाम जरूर कम किए हैं, लेकिन ट्रांसपोर्टरों द्वारा भाड़ा कम न किए जाने से महंगाई अपनी जगह बरकरार है।
पिछले कुछ महीनों से महंगाई की मार से रोज रू-ब-रू होने वाला गरीब तबका रोज कसकता और सुबकता है, लेकिन उसे इससे छुटकारा नहीं मिल रहा है। आलम यह है कि सब्जी हो या खाद्यान्न हर जगह उसे जेब ढीली करनी पड़ रही है। बारिश एवं बाढ़ से पूर्वांचल कि 40 फ़ीसदी खेती बर्बाद हो चुकी है। इससे बड़ी आबादी प्रभावित है। देखा जाए तो बलिया, गाजीपुर, मऊ एवं वाराणसी तक गंगा एवं उसकी सहायक नदियों के तटीय इलाकों में होने वाली सब्जी की खेती पानी के जलजमाव से नष्ट हो चुकी हैं। किसान तबाह हो चुके हैं। गांव की सब्जी मंडियों से लेकर नगरीय क्षेत्र में भी महंगाई का असर साफ दिखाई दे रहा है। ऐसे में सब्जी की कीमत आसमान छू रही है। देखा जाए तो किसान से लेकर आम आदमी तक परेशान है। महिलाओं को किचन संभालना कठिन हो गया है। दो माह पहले जहां ₹100 में एक छोटा परिवार सब्जी खरीद कर एक दिन का काम चलता था। अब उसे दो से तीन गुना पैसा खर्च करना पड़ रहा है।
.

.
महंगाई किसी एक को नहीं डंस रही है। यह हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई से लेकर हर वर्ग और धर्म को अंदर तक झकझोरती है। इस बीमारी से लोग तिल -तिल कर मर रहे हैं। इसकी मार इतनी ज्यादा दर्दनाक होती हैं कि इसे हर इंसान बर्दाश्त नहीं कर पाता है।
यह महंगाई इतनी बढ़ कैसे जाती हैं, इसका जवाब अर्थशास्त्री ही दे सकते हैं ? लेकिन हमेशा इस तकलीफ़ में आम आदमी ही संघर्ष करता हैं। हम 21वी सदी में जी रहे हैं और आधुनिक सुविधाओं ने हमे इतना ज्यादा आगे बढ़ा दिया हैं कि उसके चलते महंगाई भी बढ़ती जा रही है। आज हर चीज़ नए ज़माने से लैस हैं और देश में खाद्यान्न, फल से लेकर सब्जी तक विदेशों से एक्सपोर्ट और इम्पोर्ट हो रहा है। जबकि भारत में बहुत कुछ उपज होता है। काफी हद तक महंगाई को रोका जा सकता है। लेकि बड़े पूंजीपति भी महंगाई बढ़ाने में कसूरवार हैं। वह खाद्यान्न एवं सब्जियों को डंप कर देते हैं। इस पर सरकार का नियंत्रण नहीं होता। फिर महंगाई चरम पर पहुंच जाती है। ऐसा अक्सर होता है। आलम यह है कि कभी प्याज, लहसुन, अदरक, टमाटर, मटर, तो कभी आलू, मिर्च तक के भाव आसमान छूने लगते हैं।
महंगाई बढ़ने की एक वजह और भी है कि जब अपने देश में उत्पादन कम होता है और हम बाहर से चीज़े खरीदते हैं, तो उस पर टैक्स देना होता है। इससे भी महंगाई बढ़ जाती है। इसका खामियाजा ग़रीबों और आम आदमी को भुगतना पड़ता है।
0000

सब्जी के दाम प्रति किलो..

-आलू 20 रु (पुराना) तथा आलू 50 रु. (नया), प्याज 40 से 50 रु., बैंगन 40 रु., करेला 50 रु., गोभी 40 से 50 रु., टमाटर 60 रु., लौकी 30, पालक 50 से 60, भिंडी 40, हरी मिर्च 60, शिमला मिर्च 100 से 120, हरी धनिया 200 से 250 रुपये किलो है।
.
.
.

Please share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!