काशी की संस्कृति में लगा चार चांद, अंतरराष्ट्रीय फलक पर वाराणसी की छाप….

गोविंद तिवारी की रिपोर्ट

वाराणसी। वाराणसी के बड़ा लालपुर स्थित दीनदयाल हस्तकला संकुल ने काशी की संस्कृति में चार चांद लगा दिया है। इससे न केवल बुनकरों की स्थिति सुधरने लगी हैं, बल्कि पर्यटन की दृष्टि से भी इसने अलग पहचान बनानी शुरू कर दी है। यहां ऐसा बहुत कुछ देखने को मिल रहा है। जिसकी लोगों ने कल्पना तक नहीं की होगी। यह उन्हें अनोखेपन का एहसास कराता है। जानकार मानते हैं कि आने वाले दिनों में यह बनारस की संस्कृति को और आगे बढ़ाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 सितंबर 2017 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया था।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 सितंबर 2017 को इसे राष्ट्र को समर्पित किया था। संकुल के शॉप्स, मार्ट व रेस्तरां हैं। बेसमेंट, ग्राउंड फ्लोर सहित तीन अतिरिक्त फ्लोर बनाए गए हैं। दो स्तरीय बेसमेंट में लगभग 400 वाहनों की पार्किग की सुविधा दी गई है। बेसमेंट पर आफिस के अलावा 11 मार्ट, कंवेंशन सेंटर, फूड कोर्ट, 14 दुकानें, पूछताछ केंद्र, प्रवेश प्लाजा, आधुनिक गैलरी, दो हजार लोगों की क्षमता का एंफी थियेटर को बनाया गया।

पहली मंजिल पर 13 मार्ट, दो एटीएम, गैलरी, दो रेस्तरां, 14 दुकानें, लाउंज, सिल्क गैलरी, कार्पेट गैलरी, इतिहास और संगीत गैलरी है। दूसरे मंजिल पर व्यापार केंद्र, गेस्ट रूम, व्यापार और सूचना का राष्ट्रीय केंद्र, चार दुकानें, 15 डारमेट्री, आफिस, लाइब्रेरी, रिकार्ड रूम, चलचित्र हाल है। तीसरे मंजिल पर 13 आफिस, व्यापार केंद्र, 15 गेस्ट हाउस, कामन हाल, पैंट्री और आफिस हैं। काशी के घाट, यहां की सर्पीली गलियां और बनारसी जीवन शैली सबकुछ इस तरीके से दीवारों पर प्रदर्शित किए गए हैं कि हर जगह जीवंतता झलकती है। यहां थ्रीडी इफेक्ट के चलते काशी के घाट, गलियों का जीवन, खान-पान के स्टॉल सब बिलकुल जीवंत हैं। यहां ऐसा बहुत कुछ देखने को है जिसकी उन्हें कल्पना तक न होगी और यह अहसास उन्हें अनोखेपन का एहसास कराएगा। कपड़े के व्यवसाय से जुड़े आरके जैन ने बताया कि जब से बनारस में संकुल खुला है।

विदेशों से भी इसके बारे में पूछताछ की जाती है। इससे बुनकरों और कारीगरों की आमदनी बढ़ रही है। इनके उत्पादों को विश्व भर में पहचान मिल रही है। पर्यटन की दृष्टि से भी इसने बनारस के महत्व को बढ़ाया है। दूर दराज से आने वाले लोग अब संकुल जाने की बात कहते हैं। आने वाले दिनों में यह नया डेस्टीनेशन के रूप में उभर रहा है।शहर के अशोक पांडेय ने कहा कि संकुल से बनारस की संस्कृति झलक रही है। बनारस की पहचान यहां की बनारसी साडि़यों को बुनने वाले बुनकरों से है। बुनकरों के लिए यह संकुल किसी वरदान से कम नहीं है। आने वाले दिनों में यह अंतरराष्ट्रीय फलक पर सूर्य की भांति चमकेगा।

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