गड़बड़झाला : उपस्थित और अनुपस्थित के खेल में बीएसए दफ्तर का लिपिक निलंबित…

बलिया। शिक्षा विभाग में गड़बड़ी को लेकर उत्तर प्रदेश में बलिया जनपद हमेशा चर्चाओं में रहा है। अब प्रदेश में ६९००० शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया में बेसिक शिक्षा विभाग का एक और गड़बड़झाला सामने आया है। जिले कुछ माह पहले शिक्षकों की सूची भेजी गई थी। इस सूची में एक शिक्षक को अनुपस्थित दिखाया गया था। सूची शासन को भेजे जाने के बाद पुन: बीएसए कार्यालय ने सुधार करते हुए उक्त शिक्षक को उपस्थित बता दूसरी सूची भेज दी। इसे भले ही छोटी चूक कही जाए, लेकिन इस गड़बड़ी के कारण शिक्षकों की संख्या प्रदेश में ६९००१ हो गई।
इसके बाद शासन ने इसे संज्ञान लिया और गंभीरता से इसकी जांच शुरू कर दी। तब बलिया की गड़बड़ी सामने आई और बीएसए बलिया को पत्र जारी किया गया। विभागीय अधिकारी को पूरे प्रकरण की जांच कर इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार अधिकारी एवं कर्मचारी का पूरा विवरण तत्काल उपलबध कराने का निर्देश हुआ है। कुछ दिन पहले शासन से पत्र आने के बाद आनन-फानन में बीएसए ने मंगलवार को एक बाबू को कसूरवार ठहराते हुए तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और अपना तथा अन्य जिम्मेदारों को सुरक्षित करने का काम किया है। उक्त लिपिक को फिलहाल अन्यत्र संबंद्ध कर दिया गया है।
बता दें कि यूपी में ६९००० शिक्षक भर्ती को लेकर जनपद के शिक्षकों की सूची मांगी गई थी। विभाग ने सूची भेजते समय एक शिक्षक को अनुपस्थित बताया था। इसके बाद शासन स्तर से उस खाली जगह को भरते हुए ग्रेडिंग के हिसाब से एक अन्य शिक्षक की नियुक्ति कर दी गई। इसी बीच बलिया बीएसए कार्यालय ने पुन: दूसरी सूची, तीसरी सूची और चौथी…सूची भी शासन को भेजने का काम किया। जिसमें उक्त शिक्षक को उपस्थित दिखाया गया। अनुपस्थित और उपस्थित के बीच क्या खेल रहा, यह तो विभाग एवं अधिकारी जाने, लेकिन शासन एवं शिक्षा विभाग की कलम फंसने लगी। अब ग्रेडिंग के हिसाब से नियुक्ति शिक्षक को सूची से बाहर करना भी कठिन कार्य था। इस गड़बड़झाले को लेकर कौन कसूरवार है, इसकी जांच कर रिपोर्ट के साथ उसका पूरा विवरण शासन ने तलब किया है। अनुपस्थित और उपस्थित के खेल में बेसिक शिक्षाधिकारी ने मंगलवार को तत्काल प्रभाव से लिपिक प्रशांत पांडेय को निलंबित कर दिया है। साथ ही उन्हें अन्यत्र संबद्ध भी किया गया है। बाबू से यह गड़बड़ी किस दशा में हुई इसके लिए स्पष्टीकरण भी मांगा गया है। शासन स्तर से एक सप्ताह के भीतर आए इस पत्र के बाद विभागीय अधिकारियों एवे कर्मचारियों की बेचैनी बढ़ गई है। इस गड़बड़ी के लिए अकेले बाबू ही कसूरवार कैसें है, बल्कि विभागीय अधिकारी भी इसक लिए बराबर के जिम्मेदार हैं। क्योंकि सूची शासन को भेजने से पहले अंतिम निर्णय विभाग का अधिकारी ही करता है। देखना है यह मामला यहीं खत्म हो जाता है या औरों की गर्दन फंसती है..?

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