“राखी” के मौके पर भाई ने “बहनों” को गिफ्ट में दिया “शौचालय”, पढ़े मिसाल पेश करने वाले “बलिया” के….

तिलक कुमार

बलिया। जो काम घर के अभिभावक नहीं कर पाए, प्रधानमंत्री शौचालय योजना के तहत प्रधान के यहां भी कोई सुनवाई नहीं हुई। वह काम करके दिखाया एक 14 वर्षीय भाई सौरभ ने। जी हां, राखी के पावन मौके पर सौरभ ने अपनी बहनों को उपहार स्वरूप शौचालय बनवाकर न सिर्फ मिसाल पेश की है, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गए है। सौरभ के इस अनोखे उपहार की अब चारों तरफ प्रशंसा हो रही है। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि सौरभ एक सात क्लास में पढऩे वाला छात्र है और अपनी पॉकेट मनी तथा रिश्तेदार द्वारा दिए गए पैसे को पाई-पाई बचाकर अपनी बहनों के लिए यह अनोखा काम किया है। बहनों ने भी अपने भाई द्वारा भेंट किए गए उपहार को पाकर तारीफ में कसीदे पढ़ते नहीं थक रही है।


केंद्र में जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी तब से अब तक करोड़ों शौचालय गांवों में निर्माण किए गए होंगे। लेकिन अफसोस एक अदद शौचालय फेफना थाना क्षेत्र के जगदीशपुर गांव में उग्रसेन कुशवाहा के परिवार को नसीब नहीं हुआ। जिससे घर की महिलाओं को बाहर जाना पड़ता था शौच करने के लिए। राखी के मौके पर जब वरिष्ठ पत्रकार तिलक कुमार ने उग्रसेन कुशवाहा के पुत्र व मिसाल पेश करने वाले भाई सौरभ से बात की तो उसने बताया कि मेरे पिताजी काम के सिलसिले में राजस्थान रहते हैं। घर में मैं अपनी मां, बड़े भाई और दो बहनों के साथ रहता हूं। जबकि एक साल पहले मेरी बड़ी दीदी की शादी हो गई है। मेरे द्वारा गांव के प्रधान जी से दर्जनों बार प्रधानमंत्री शौचालय योजना के तहत शौचालय की मांग की गई थी, लेकिन प्रधान जी द्वारा जल्द ही देंगे करके हमेशा से मुझे निराश किया गया। मेरी मां तथा बहनें शौच के लिए जब बाहर जाती थी तो मुझे बहुत पीड़ा होती थी। ऐसे में मैं ठान लिया कि अब शौचालय मैं ही बनावाऊंगा। मुझे मेरे पापा से हर महीने पॉकेट मनी के रूप में 500 रूपए मिलते थे। जबकि मेरे पिताजी के पास एक साथ इतना पैसा नहीं था कि वे एक साथ 20 से 25 हजार रूपए खर्चा करके शौचालय बनाएं। ऐसे में मैं दो साल की पॉकेट मनी बचाकर १२ हजार रूपए इकट्ठा किया। इसके अलावा जब मेरे यहां कोई रिश्तेदार मामा, मौसी आते थे तो वे भी मुझे 100, 200 रूपए देकर जाते थे। मैं उन सारे पैसों को इकट्ठा कर 16 हजार रूपए जमा कर लिया था। शोचा था कि इस बार की राखी में अपनी बहनों को गिफ्ट में शैचालय ही उपहार देंगे और आज मैं ऐसा कर पाया हूं। इसलिए आज मैं बहुत खुश हूं।


मजदूर को पैसा न देना पड़े इसलिए खुद की मजदूरी
बलिया।
16 हजार रूपए इकट्ठा करने के बाद भी सौरभ के पास कुछ पैसे कम पड़ रहे थे। ऐसे में सौरभ ने सिर्फ एक मिस्त्री रखकर खुद मजदूरी का काम करने का फैसला लिया। ईंट की ढुलाई से लेकर मसाला तैयार करना सब काम सौरभ ने ही किया और तीन दिन में शौचालय बनवाकर राखी के दिन अपनी बहनों को उपहार देकर मिसाल पेश कर दी।

Please share

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!