सियासी नजरिया ः घर में हुए बेगाने….



बलिया।
प्रमुख दलों में शीर्ष पर रहने वाली एक पार्टी के कार्यकर्ता एवं संगठन से जुड़े लोग वर्तमान में कसक रहे है। वजह उनका दर्द बांटनेे वाला कोई नहीं है। दिखाने और जताने के लिए इनकी हुकूमत चारो तरफ है। लेकिन खुद का सम्मान बचाना इनके लिए चुनौती बना है। कसकना इस बात को लेकर भी है कि समस्या सामने आने के बाद भी प्रदेश में हुकूमत चलाने वाले बड़े नेता और संगठन के नेतृत्वकर्ता मुहं तक नहीं खोलते। आलम यह है कि जनपद में संगठन को संचालित करने वाले खुद की कुर्सी सुरक्षित रखने के लिए दल के बड़े नेताओं की खुशामत करने में जुटे रहते है।
बता दें कि हुजूर पार्टी जिला इकाई के सबसे बड़े पदाधिकारी हैं, इनकी कोई खिलाफत करने की हिमाकत तक नहीं कर सकता। ऐसा किया तो, वह पाटी्र में अनुशासनहीन कार्यकर्ता व पदाधिकारी के रूप में चिह्नित हो सकता है। इससे भय सबको है। कोई विशेष अड़चन नहीं आई, तो अगले संगठन चुनाव तक हुजूर को अगुआ मानना मजबूरी है। एक काम में हुजूर को महारथ हासिल है। वह प्रतिदिन सुबह उठकर बड़े नेताओं की राजनीतिक पूजा जरूर करते हैं। इसके लिए कद्दावर नेताओं की डेहरी भी चुमते है। उनके साए में वह खुद को पूरी तरह महफूज पाते है।
बेचारे कार्यकर्ता तो अब कहीं के नहीं है, इनकी बदौलत चाहे नेताजी का कद कितना बढ़ा हो, लेकिन इनकी पूछ दो कौड़ी की है। आलम यह है कि अब न संगठन पूछ रहा है, न जनप्रतिनिधि। इन्हें कार्यकर्ताओं से कोई मतलब तक नहीं है। इसकी सच्चाई जाननी है तो कुछ उदाहरण आप जान सकते हैं। कुछ दिनों पहले बांसडीहरोड थाने पर एक पदाधिकारी को खाकी वर्दी वालों ने जमकर अपमानित किया, लेकिन सभी खामोश रहे। इतना ही नहीं रसड़ा और बिल्थरा विधानसभा के मंडल अध्यक्षों के साथ भी दुव्र्यवहार की कहानी सभी जानते हैं। लेकिन कोई दर्द बांटने वाला नहीं मिला। बड़े पदाधिकारियों को जहां इतनी इज्जत बख्शी जा रही हो, वहां छोटे कार्यकर्ताओं की कितनी पूछ होगी, यह बताने की जरूरत नहीं है। शहर के एक बड़े पदाधिकारी भी इस दर्द से कराह रहे हैं। उनके पट्टीदारों से जमीन का मामला तूल पकड़ा। इसमें न्याय की गुहार हर दरवाजे तक लगाई गई, लेकिन जिला व पुलिस प्रशासन ने साथ नहीं दिया। बड़े नेता भी खामोश रहे।

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