सियासी मैदान : डैमेज कंट्रोल के लिए भेदिया का सहारा ले रहे हैं प्रत्याशी

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हनुमाओं की अनदेखी अब आम व खास में टीस बनकर उभरी
बलिया। चुनावी रण में फतह हासिल करने के लिए नेता कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैंं। किस इलाके में कैसी चुनावी हवा बह रही है ? कौन क्या कह रहा है ?कौन नाराज है ? कौन खुश है ? किसका क्या मूड है ? इनका दिल कैसे जीता जाए ? इन सारे बिंदुओं पर गांव समीक्षा निरंतर चल रहे हैं। चुनावी समीकरण ठीक किए जा रहे हैं। साथी डैमेज कंट्रोल के लिए भेदियों का सहारा लिया जा रहा है। सभी राजनीतिक दलों में गुप्तचर के रूप में कई कार्यकर्ता लगाए गए हैं, ताकि अंदर का भेद उन तक पहुंचता रहे। गांव/ गांव में गुहार, मनुहार व मान- मनौव्वल पर जोर दिया जा रहा है।
सभी राजनीतिक दलों के अपने अपने तरीके हैं। वर्तमान में कोई सुबह शाम मतदाताओं को स्मरण कर रहा है, तो कोई 24 घंटे। सब का सिस्टम अलग-अलग है। बहुत कुछ वोटरों के वजन पर भी निर्भर करता है। कहीं गणेश परिक्रमा जारी है, तो कहीं केवल दुआ सलाम। सबके अपने-अपने सिस्टम है। लेकिन प्रमुख दल हरेक मतदाता के मूवमेंट पर नजर गड़ाए हुए हैं। कुछ बाहरी, तो कुछ अनजान चेहरे गोपनीय ढंग से मतदाताओं से मिल रहे हैं। कुछ नेताजी के समर्थक बनकर भी भेद ले रहे हैं। वोटरों का मन टटोला जा रहा।
देखा जाता वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में कुल 82 उम्मीदवार मैदान में हैं। राजनीतिक रण में हर कोई अपना दाव खेल रहा है। आलम यह है कि बड़े दलों के प्रत्याशियों ने अपना नेटवर्क व्यापक रूप से तैयार किया है। मसलन, अगर किसी गांव में किसी दल के नेता का जनसंपर्क होता है, तो वहां पहले से ही उसकी तैयारी कर ली जाती है। ऐसे में वहां पर कौन-कौन लोग साथ नहीं थे ? कितनी भीड़ थी ? किस तरह का माहौल रहा ? जनसभा के बाद लोगों की क्या प्रतिक्रिया रही ? जबकि विरोधी दल के उम्मीदवार इसकी काट पैदा करने के लिए उससे कहीं अधिक अगले दिन उस क्षेत्र में भीड़ जुटाने व जनसभा करने का काम करते हैं। मतदाताओं की नाराजगी कहीं सड़क को लेकर है, तो कहीं विकास को लेकर। भूत लेकर सियासत की रोटी सेकने वाले रहनुमाओं की अनदेखी यहां के आम और खास में टीस बनकर ऐसे उतरी है की नेता परेशान नजर आ रहे हैं।
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