सियासी मैदान ! “टिकटार्थी” का इम्तिहान..?

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रउवा लोगन के विधानसभा चुनाव के बारे में नई जानकारी दिहल औरी लगाव बढ़ावल “अपना शहर न्यूज पोर्टल” के मुख्य मकसद बा। एही खातिर इ पोर्टल बनावल गईल बा। आवे वाला चुनाव के ताजी खबर रउवा सभे तक पहुंचे, आ जे राजनीति के ककहरा नइखे जानत, भा जाने के इच्छा रखत बा त वो लोगन के सामने भी चुनावी चकल्लस परोसल जाई..।

इहां फेंकत-लपेटत बाड़न, उहां फीचल- निचोड़ल..?
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विधानसभा चुनाव की “पगली घंटी” बजते ही राजधानी में मेला
बलिया।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की “पगली घंटी” बजते ही चारो ओर हल्ला सुनाई देता। प्रमुख दलों में टिकटार्थियन के इम्तिहान अभी बाकी बा। इहाँ खादीधारी फीचल-निचोड़ल जात बाड़न..। बड़े-बड़े अखाड़ेबाजन के अक्किल भुलाइल बा। अईसना में टिकटार्थी अकुताइल अउर अझूराइल बाड़न। कुछ मैदान में ताल ठोकत अगरात, कुछ इतरात बाड़न। त कुछ के चेहरा मुरदाईल बा।
अपना-अपना जुगाड़ में केहू लखनऊ, त केहू घर छोड़के दिल्ली भागल पराईल बा। लागता पांच साल प फिर से सियासी बाढ़ आईल बा। इ बाढ़ से सब केहू आकूताइल बा। अपन राजनीतिक फसल बचावे खातिर दरबारे-दरबारे चिरौरी-विनती अउर निहोरा करत फिरत बाड़न। कुछ लोग सीधे हुक्मरान के पैर प नाक रगड़त बाड़े, त कुछ उनके सलाहकार, मंत्री, पहरेदार के गोड़े-हाथे गिरत बाड़न। बहुते टिकटार्थी अईसन बाड़न की उ अपन बात पहुंचावे में नाकाम बाड़न। उ दल के मुखिया के गुरु, उपरोहित, पुजारी, रसोईया, चालक, माली औरी अन्य करीबी के चौखट प माथा टेक रहल बाड़न। अब राजनीति के लहलहात खेती के बचावे खातिर अटैची औरी बोरा भरके गुप्त दान दिहल जाता। हालत इ बा की खादीधारी दानदाता के कतार लमहर भईल जाता।
अभी चुनाव प चरचा होते रहे कि उहवाँ ‘मंगरू काका’ पहुंच गईलन औरी तपाक से बोल पड़लन, अरे बूड़बक हम विस चुनाव के कईगो सियासी बाढ़ अउर कटान देख चुकल बानी। सियासी पैंतरेबाजी तुहन के ना समझ में आई। टिकट के गुप्त दान में भी बड़ा लोचा बा। दान दिहला के बादों टिकट के फसल काटे के मिलबे करी इ कहल कठिन बा। सियासी बाढ़ में खेती डूबी की बची इ समय बताई। दल के मुखिया अउरी उनका चहेतन के छोड़के केहू के खेती सुरक्षित इनखे। अभी बहुते लोग सियासी बाढ़ के मझधार में फंसल बाड़न। इनकर का होई भगवाने मालिक बाड़न। इ राजनीति अईसन ह की जीवनभर के कमाई लोग लूटाके छटपटाते रही जालन। तबे लुटावन भाई बोल पड़लन चुनाव में दिहल गुप्त दान प्रचारित और प्रसारित भी ना कईल जाला। काम बन गईल त वाह-वाह औरी ना बनल त आह-आह। अकेले सुबकत, कसकत और कुहूकत र ह। पांच साल प आवे वाला इ सियासी बाढ़ अ कटान से कुछ नेता आबाद, त बहुते बर्बाद हो जालन। इ परंपरा बहुत पुरान ह। तबे मंगरू काका फिर बोले लगलन चिंता के बात नईखे। भाई हो चुनाव में लूटे वालन के ही लुटाला, ऐसे जनता के घबरइला के जरुरत नइखे। देखत नईख अपन उल्लू सीधा करे खातिर चारो ओर धसोरा-धसोरी बा। केहू लगी लगवले बा, त केहू कांटा फंसवले बा। कुछ दिन पहिले इ पार्टी औरी झंडा-डंडा खातिर जान देत रहलन औरी लड़त -मरत..। आज जरत औरी बुझात बाड़न। पार्टी से बगावत करत बाड़न। केहू ओने कूदत बा, त केहू ऐने उछलत बा। समझ में नईखे आवत के लड़ी औरी के मैदान से बाहर रही। कहत बाड़न मंगरू काका इ चुनाव के “पगली घंटी” ह टिकट के इम्तिहान में अच्छों- अच्छों के पागल बना देला। टिकट के फसल काटे खातिर नीमन, अनेरिया, लुच्चा, लफंगा, लंपट अउर लबार सब केहू कतार में बा। खास बात ई बा की राजधानी में “टिकटार्थी मेला” के आयोजन बा। दुकान छान के कुछ लोग बईठल बाड़न। उनकर धंधा बड़ा चोखो बा। तब लंपट भईया कहलें काहें ना रही काका सभे केहू मेला में ओहरे कल्पवास कईले बा। उहवाँ टिकटे खातिर खूब मुंहनोचउव्वल बा। रोजे खबर आवता। कोरोना महामारी अउरी जाड़ा में भी भाग- दौड़ एतना बा कि लोगन के तर-तर पसीना चूअता। केहू कउड़ा पर लंबी-लंबी छोड़ता, त केहू सोसल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप औरी इंस्टाग्राम पर फेकत-लपेट बा। देखे के बा केकरा में केतना दम बा, ए इम्तिहान में के पास होला औरी के फेल..!
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