सियासी मैदान : टिकट की चाह में अनिद्रा के शिकार है सफेदपोश..

वोटरों के जिक्र और फिक्र की परंपरागत दखल शुरू

अखिलानंद तिवारी
बलिया।
विधानसभा चुनाव 2022 धीरे-धीरे करीब आ रहा है। पूर्वांचल में नेतागण गांव-गांव जनता दरबार की रणनीति तैयार कर रहे हैं। अब ग्रामवार मीटिंग, लोगों की भीड़, जनता के प्रति निष्कपट प्रेम, वोटरों से अपनापन, दोनों पहर जिक्र और हर समय फिक्र की परंपरागत सियासत का ढ़ाचा भी खड़ा हो गया है। चुनाव पर नजर टिकाए लड़ाकों (उम्मीदवारों) की बेचैनी टिकट को लेकर है। प्रमुख दलों ने अपना पत्ता नहीं खोला है। टिकट की “ड्रा” प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए नेतागण व्याकुल हैं। दिग्गजों से चुनावी मैदान पटा पड़ा है, यहां कई नेता एक साथ माहौल बनाने में लगे हैं।
सियासी उथल-पुथल के बीच पूर्वांचल के कई कद्दावर नेता चैन की नींद सो रहे हैं, इन्हें सही वक्त का इंतजार है। टिकट तो हर समय इनकी जेब में रहता है। लेकिन पकड़ ढीली रखने वाले परेशान हैं। कई चिंता से गले जा रहे हैं, तो कुछ अनिद्रा के शिकार हैं। कुछ दिनचर्या गड़बड़ाने से खाना तक कम कर दिए हैं। इतना ही नहीं इन दिनों ज्यादातर उम्मीदवार घर छोड़कर लखनऊ और दिल्ली में डेरा डाले हैं। देखा जाए तो वर्तमान में इन सफेदपोशों के सारे लक्षण विद्यार्थी जीवन से मिलते -जुलते हैं। ऐसा होना स्वभाविक भी है। क्योंकि चुनावी वर्ष आते ही राजनीतिक पाठशाला शुरू हो गई है और सफेदपोश भी विद्यार्थियों के पंच लक्षण अपनाए हुए हैं।

विद्यार्थियों के पांच लक्षण हम बचपन से रटते आए हैं, यह हमेशा जुबान पर ही रहता है। आप भी इस सत्यता से रू-ब-रू हो जाएं “काक चेष्टा, बको ध्यानं, श्वान निद्रा तथैव च, अल्पहारी, गृह त्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणं”। यह सारे के सारे लक्षण इन दिनों हमारे सफेदपोश विद्यार्थियों में कूट-कूट कर भर गए हैं। राजनीति शास्त्र की पढाई जारी है। अब चुनाव मैदान में उतरने से पहले प्रश्र पत्र तैयार हो रहे हैं, जो मंच पर विरोधियों को लताडऩे के काम आएंगे। इतना ही नहीं लोकलुभावने चुनावी घोषणा पत्र को तैयार करने में दल के मुखिया जुटे हैं। जबकि जनता की भलाई के लिए बहुबिकल्पी प्रश्नों के उत्तर उम्मीदवार अभी से रट रहे हैं। चुनावी लहर में विरोधी को चित करने के लिए बड़ी समस्याओं को उठाना और उसे जनता के बीच परोसने की कला भी सियासी पाठशाला में पढ़ाई और सिखाई जा रही हैं।
चुनावी वर्ष में सभी मैदान मारने की फिराक में हैं, फर्क बस इतना है कि वर्तमान विधायक जहां जनता से बचाव के लिए साल्व पेपर तैयार कर रहा हैं, वहीं प्रतिद्वंदी उन्हें नंगा करने के लिए पूरा लेख तैयार करने में जुटे हैं। अगर विरोधियों की मेहनत रंग लाई तो इस बार का चुनावी माडल पेपर सबसे अलग होगा।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दिन करीब आ रहे हैं, राजनीतिक दल भी वोटरों के अलग-अलग वर्ग को लुभाने के लिए अलग- अलग तरीके अपनाने में जुटे हैं। सपा और बसपा ब्राह्मणों को केंद्रित कर प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन और गोष्ठी का आयोजन कर रही है, ता भाजपा भी पीछे नहीं है। इस बार माना जा रहा है कि ब्राह्मण भाजपा से नाराज चल रहे है और इसका फायदा उठाते हुए बसपा एवं सपा ब्राह्मणों को अपने साथ जोडऩे की मुहिम में जुटी है। पूर्वांचल के कई जनपदो में लगातार बसपा के बाद सपा विधानसभा वार प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन का आयोजन कर रही है। देखा जाए तो समाजवादी पार्टी ने पहला प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन जनेश्वर मिश्र की जयंती पर पांच अगस्त को बलिया से शुरू किया था। इसमं प्रबुद्ध सभा के प्रदेश अध्यक्ष मनोज पांडेय का कहना था कि प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन की शुरुआत ब्रलिया से हुई है। इसके बाद औरैया,फतेहपुर, चित्रकूट, बांदा आदि में क्रमश: चला। इसका समापन नहीं होगा, बल्कि यह यात्रा जारी रहेगी। विधानसभा चुनाव को लेकर जो सबसे अहम बात है, वह दल में नेताओं की आस्था व निष्ठा को लेकर है। बहुत कम लोग पार्टी के प्रति आस्थावान है। इन्हें केवल अपना हित दिखाई देता है।मनचाही न होने पर यह पार्टी में रहते या तो भीतरघात करते हैं या छोड़कर दूसरे दल में पहुंच जाते हैं। ऐसे कई उदाहरण पिछले विधानसभा चुनाव में देखने को मिले। पूर्वांचल में जोड़-तोड़ की राजनीति शुरु है। समय पर टिकट का बंटवारा भी होगा, तब तक धैर्य धारण करें। देखना है अनिद्रा के शिकार पूर्वांचल के नेताओं को दल के मुखिया कब राहत देते हैं..?

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