अखिलानंद तिवारी
बलिया। *राह कठिन है, मुश्किल डगर है, राहों में बिछे कांटे हैं, पग नंगे हैं और पथ पर पड़ी दरारें हैं…।* वर्तमान में बड़े नेताओं के साथ भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है। फेफना विधानसभा पर एक नजर डालें तो समाजवादी पार्टी में कुछ दिन पहले तक काफी हो-हल्ला मचा था। राजनीतिक गलियारे में गरमाहट थी। कुछ दिग्गज पहले से चुनावी मैदान तैयार करने में जुटे थे। समर्थक रैली, जुलूस एवं कार्यक्रमों में पूरे जोश के साथ लगे थे, लेकिन बसपा से सपा में पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी की इंट्री के बाद कार्यकर्ताओं में नि:शब्द वार्तालाप जारी है। चर्चा यह भी है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव ने एक साथ तीन दिग्गजों को लखनऊ बुलाया था। मुखिया का मंत्र का असर है कि वहां से आने के बाद सब शांत हैं।
पिछले विस चुनाव में पछाड़ खाने के बाद पांच साल तक वनवास काट चुके नेता इस बार कुछ नया करने में जुटे है। सियासी अखाड़े में उतरने से पहले गांव-गांव से अपने समर्थकों की टोली बनाई जा रही है। नेता बखूबी जानते हैं कि जनाधार के बल पर सबकुछ होना है। वह चाहे शक्ति प्रदर्शन हो, या आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट हथियाना। हालांकि अंबिका चौधरी की सपा में घर वापसी के साथ ही जनपद में जोरदार स्वागत अब भी चर्चा का विषय बना है।
ऐसे पूर्व मंत्री अंबिका चौधरी को जनपद की वर्तमान राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। लगातार चार बार विधायक चुने गए अंबिका चौधरी ने राजनीति में बहुत उतार-चढ़ाव देखे हैं। मुलायम सिंह यादव के कार्यकाल में अंबिका चौधरी सपा के मुख्य रणनीतिकार भी रहे। जातीय समीकरणों का ताल-मेल हमेशा से बेहतर रहा है। बड़े व्यक्तित्व के नाते सभी वर्गो में अच्छी पकड़ मानी जाती है। इस बार भी जातीय समीकरणों से इतर राजनीतिक गोटी बिछाने का काम अभी से शुरू है। नेता की राजनीतिक कुशलता में कोई कमी नहीं है। दो बार की चूक महज इस्तेफाक है, क्योंकि यह दोनों लड़ाई उन्हें अपनों से ही लडऩी पड़ी। इस बार समीकरण कुछ और ही बन रहा है। अगर सपा से अंबिका चौधरी टिकट पाने में सफल रहे तो, निश्चित ही माहौल उनके पक्ष में हो सकता है। इन दिनों दलों मेंं राजनीतिक जोड़-तोड़ की पेंचीदगियों से कहीं बड़ा संकट टिकट बंटवारे का है। पार्टी में भीतरघात को लेकर नेता और दिग्गज दोनों फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं। ऐसा इसलिए हैं कि एक विस क्षेत्र में एक ही दल के कई दिग्गज अखाड़े में उतरने की जिद्द किए हुए हैं। इससे अंदर ही अंदर सियासी तपन बढ़ गई है।