सियासी संग्राम: अरे ! जनता की अदालत में नेताजी का इम्तिहान…

काका अब रउवे बताई…परिवर्तन जरूरी बा की ना..?
अखिलानंद तिवारी
बलिया।
विधासभा की पड़ताल…। भगेलू काका जल्दी नहा-धो के तैयार हो जा, आज फिर जनता की अदालत में चले के बा। बाबू हम ‘मंगरूआ’ के खोजे में थाक गईल बानी। बुढ़ापा घेरले बा, तोहरा अइसन छरगर संगे चलल बड़ा मुश्किल बा। घाम तेज भईल आवता, मन अउसाता, ऊंभ-चूभ भईल बा। आज हमके माफ कर..। काका तोहरा बिना केहु ना बोली, ना मुंह खोली। उ मंतर त तोहरे पासे बा। तबे से उदबेगले बाड़ त चल। लेकिन एगो बात हमरो मान ल, आज अलोता नईखे जाएके। इच्छाभर इतमिनान से एहीजे जनता के ओरहन सुन। इहो बड़ा चर्चित विधानसभा ह। आज जनता के अदालत में नेताजी के इम्तिहान होई जाव।


भगेलू काका इ इलाका कौना विधानसभा में बा। अरे बूड़बक, इहवां पढ़ल-लिखल लोग रहेलन। एने से लेके ओने तक खेत-खलिहान, पगडंडी औरी गांव-डड़ार ना मिली। इ सबसे पुरान शहर ह। चारो ओर बिजली-बत्ती जरेला। अमीर के घरे चाव से चउकस नौकर रखल बाडऩ। जेने देखब ओने सड़क बा। हर समय नीला औरी लाल बत्ती में साहब और मंत्री जात आवत रहेलन। सोच-समझ के लोगन से बात करेके होई। केहू से अझूरईला के जरूरत नईखे। काका हमके तू निठल्ला औरी अंगूठा छाप मत बूझ। हम बड़-बड़ शहरी बाबू के संगे उठत-बईठत रहलीं ह। आज हमार कोशिश बा की लोगन तक सही-सही बात पहुंचा दीं।


विधानसभा में त कहे के बहुते सुविधा बा, लेकिन जनताजर्नादन से मिलला के बाद बात कुछ औरी समझ में आवता। इ सच्चाई जनला के बाद लोग दांते अंगूरी काटे लगिहन। लोग सही कहत बाडऩ इ विस क्षेत्र सबके ना धारेला, इहवां हर चुनाव में जनता परिवर्तन चाहे ले। हमरा इ कहते भगेलू काका बोल पड़लन, तोहार बात गलत बा, हम कईसे मान लीं। काका हम ना लोग कहत बाडऩ कि प्रदेश के सबसे बड़की पंचायत में पहुंचला के बाद अगले चुनाव में लोग कुर्सी से नेताजी के उतारे खातिर टांग खींचे लागेलन। कई नेता एही के शिकार भईल बाडऩ। त का कहल चाहत बाड़ कि कुर्सी अबकी ना बची। काका फिर कहलन हम ए बात से सहमत नईखीं। अभी इम्तिहान बाकी बा। जनता के मूड़ के कौनो ठीक नईखे। काका इ बात मत भूला कि ए क्षेत्र में बुद्धिजीवी ज्यादा मात्रा में पावल जालन। एही से हमेशा परिवर्तन होला। एहिजा एक से एक कद्दावर नेता अबकी चुनावी अखाड़ा में आवे खातिर साढ़े चार साल से अखाड़ा में धूर मलत बाडऩ। पिछले चुनाव मेंं जनता युवा उम्मीदवार के लूरगर, छरगर ,जोरगर औरी सनगर समझ के राजा बना दिहलस।


अब उनका राज में समस्या के अंबार लागल बा। शहर के हर कोना में कहीं ठेंघुनभर, त कहीं कमरभर जलभराव होता। लोगवा ए समस्या से उबिया गइल बा। शहरी लोग कंउचत और खूनसाता लेकिन कौनो रास्ता नईखे सूझत। मजबूरी का न करा देले…बारिश औरी नाला-नाली के गंदा पानी के लोग ओढता, बिछावता औरी पहिनता। ए बात क एहसास जिम्मेदार लोगन के नइखे होत। राष्ट्रीय राजमार्ग तथा मुख्य मार्ग उधड़ के गड्हा में बदल गईल बा। सड़क पर कदम रखे से पहले लोग जमीन, फिर बदरी निहारता। लेकिन इ केहूके नईखे लउकत। कई लोग राजा के भीरी जाके पुरहर समस्या रखला के बाद निहोरा औरी चिरउरी कईलन। लेकिन नासूर बनल ए समस्या के काछल औरी पोछल आम आदमी के बूता के बाहर बा। सड़क के बात छोड़ दीं, अस्पताल में चलीं, उहां मरीज दिनदहाड़े लूटल जात बाडऩ। इलाज, दवा, जांच में लाचार औरी बेसहारा दम तोड़ता। एहु जगह रोगी के फल औरी दूध पर डाका डलाता। आखिर ए विषय पर के सोची। देखीं इहवां मजबूरी के रोज कत्ल होता, इ रोकले ना रूकी। इ एगो बानगी भर बा, समस्या के त अंबार बा। ए काका बताव हम तोहके का, का बताई। पड़ताल औरी इम्तिहान हो गईल….अब रउवे बताई…. परिवर्तन जरूरी बा की ना ?
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