जयंती पर विशेष : जेपी ने इंदिरा गांधी को सत्ता से उखाड़ फेंकने का किया था काम..





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लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने इमरजेंसी के दौरान देश को किया था एकजुट
बलिया/जयप्रकाशनगर। क्रांतिकारी धरती बलिया के द्वाबा (गंगा व सरयू नदी के बीच का हिस्सा) जयप्रकाशनगर (सिताबदियारा) में जन्में लोकनायक जयप्रकाश नारायण को लोग उनकी जयंती पर हर साल याद करते हैं। समाजवाद के पुरोधा रहे जेपी को देश की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी जैसी शख्सियत के तानाशाही रवैये को उखाड़ फेंकने के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है कि उनके आंदोलन की वजह से इंदिरा गांधी को सत्ता से हाथ धोना पड़ा था ।

इंदिरा गांधी के शासन काल के दौरान देश मंहगाई से लेकर कई बुनियादी आवश्यकतों की पूर्ति न होने से समस्याओं से जूझ रहा था। लोग सत्ता के हनक में रहने वाली इंदिरा गांधी की सरकार से परेशान थे। 1974 में जब जेपी से यह बर्दाश्त नहीं हुआ तब उन्होंने सत्ता के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया। उन्होंने इंदिरा गांधी को पत्र लिखा और देश के बिगड़ते हालात के बारे में जानकारी दी। इसके बाद देश के अन्य सासंदों को भी पत्र लिखा और इंदिरा गांधी के कई फैसलों को लोकतांत्रिक खतरा बताया ।
जयप्रकाश नारायण के इस पत्र से राजनीतिक जगत में हंगामा खड़ा हो गया था। क्योंकि पहली बार किसी शख्स ने इंदिरा गांधी के खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत की थी। साथ ही उन्होंने सांसदों को लिए अपने पत्र में लोकपाल बनाने और लोकायुक्त को नियुक्त करने की मांग की थी। जेपी ने भष्ट्राचार के खिलाफ बनाई गई कमेटी की आवाज दबाने का आरोप भी इंदिरा गांधी पर लगाया था ।
उधर इंदिरा गांधी ने राज्यों की कांग्रेस सरकारों से चंदा लेने की मांग की। इस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री चीमन भाई से भी 10 लाख रुपये की मांग की थी और कोष बढ़ाने के लिए कई चीजों के दाम बढ़ा दिए गए थे।इसके बाद प्रदेश में आंदोलन हुए और पुलिस की बर्बरता से कई आंदोलनकारी मारे गए। इस दौरान 24 जनवरी 1974 मुख्यमंत्री के इस्तीफे की तारीख तय कर दी गई। लेकिन चीमन भाई के रवैये से आंदोलन और भड़क गया। उसके बाद जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन का समर्थन किया, जिसके बाद उन्हें गुजरात बुलाया गया।
जयप्रकाश नारायण के गुजरात जाने से पहले उन्होंने राज्यपाल के जरिए अपने हाथ में सत्ता रखने की कोशिश की। नौ फरवरी 1974 को जयप्रकाश नारायण के गुजरात आने से दो दिन पहले ही चिमनभाई से इस्तीफा दिलवा दिया और प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया। इसके बाद मोरारजी देसाई ने नारायण के साथ दोबारा चुनाव करवाने की मांग की। साथ ही यह आंदोलन बिहार जैसे अन्य राज्यों में भी फैलने लगा। उसके बाद रेलवे के लाखों कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। जिससे इंदिरा गांधी के सामने दिक्कत खड़ी होने लगी कि आखिर पहले किससे निपटा जाए। साथ ही वह आग बिहार में आ गयी और गुजरात की तरह छात्रों ने बिहार में भी आंदोलन किया। जिसमें उन पर गोलियां चलाई गई, जिसमें कई छात्र मारे गए और तब जेपी को आंदोलन की कमान संभालने की मांग की गई। हालांकि जेपी ने आंदोलन की कमान संभालने से पहले कहा कि इस आंदोलन में कोई भी व्यक्ति किसी भी पार्टी से जुड़ा हुआ नहीं होना चाहिए। उसके बाद लोगों ने उनकी सभी मांग को मान लिया गया और राजनीतिक पार्टियों से जुड़े हुए छात्रों ने भी इस्तीफा देकर जेपी के साथ जाने का फैसला किया। बाद में जेपी ने अपने हाथ में आंदोलन की कमान ले ली और बिहार के मुख्यमंत्री अब्दुल गफूर से इस्तीफे की मांग की । उस दौरान जेपी ने उनकी भष्ट्राचार कालाबाजारी आदि के खिलाफ लड़ाई जारी रखा। आंदोलन को जारी रखते हुए कांग्रेसियों समेत कई लोग इसका विरोध करने लगे। उसके बाद इंदिरा के जयप्रकाश विरोधी बयानों से आंदोलन बढ़ता गया और जयप्रकाश नारायण ने आंदोलन को तीखा करने का काम किया। उसके बाद जयप्रकाश नारायण ने सरकार को हटाने को लेकर आंदोलन तेज कर दिया।
आठ अप्रैल 1974 को जयप्रकाश नारायण ने विरोध के लिए जुलूस निकाला। जिसमें सत्ता के खिलाफ आक्रोशित जनता ने हिस्सा लिया। इसमें लाखों लोगों ने भाग लिया और खुद जयप्रकाश नारायण ने इसकी अगुवाई की। जयप्रकाश नारायण के इस आंदोलन से इंदिरा गांधी के नीचे से सत्ता की जमीन खिसकने लगी और बाद में इंदिरा गांधी को विरोध का इतना सामना करना पड़ा। उनके हाथ में सत्ता ज्यादा वक्त नहीं बच पाई।जयप्रकाश नारायण ने आजादी के बाद ही नहीं, उससे पहले भी गांधी के साथ भारत छोड़ो जैसे आंदोलनों को सफल बनाया था।
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