साहित्य-वातायन : साहित्यिक क्षितिज को रौशन कर रहीं डाॅ. अमलदार “नीहार” की रचनाएं…

बलिया। असाधारण क्षमता के धनी ख्यातिलब्ध रचनाकार डाॅ. अमलदार “नीहार” के बारे में आज कुछ लिखने और कहने का मौका मिला है। आप श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष है। आपका जन्म स्थान जौनपुर जिले के एक छोटे से गांव जनापुर पनियरियां, पोस्ट गड़ैला में हुआ। शिक्षा-दीक्षा भी आरंभ से लेकर स्नातक तक ग्रामीणांचल में हुई। १९८१ में स्नातक करने के बाद चार साल के अंतराल पर पुन: पढ़ाई शुरू की और १९८७ में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार से एमए प्रथम श्रेणी से पास किया। इसके बाद वहीं से शोघ कर पी.एच.डी की डिग्री हासिल की। अब नौकरी के साथ साहित्य सृजन ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य है। “नीहार” साहब पुस्तकों की आकर्षक दुनिया के माध्यम से समाज को जीवंत करने का कार्य कर रहे हैं। इनका मानना है कि बुनियादी साक्षरता को मजबूत बनाने के लिए युवाओं में पढऩे की आदत को बढ़ावा देना जरूरी है। आपने साहित्य के माध्यम से अनेक पुस्तकों की रचना की। आपकी रचनाओं में अच्छाई यह झलकती है कि समाज के सभी वर्गो की रुचियों और लोगों की क्षमताओं को ध्यान में रख किताबों को लिखा है। आपकी भाषा विषय के अनुरुप कठिन और सरल दोनों है। रचनाओं की अनूठी शैली और बेहतर उच्चारण के कारण पुस्तकें हर जगह प्रभाव बनाती जा रही हैं। समाज की जटिल भावनाओं और विचारों को सरल भाषा में परोसने का काम निरंतर जारी है। अपना दीर्घकालिक प्रभाव छोडऩे के लिए आपकी सभी रचनाएं सर्वथा समर्थ हैं, आप अधुना पूर्ण आत्मविश्वास एवं साहस के साथ रचनाओं में जुटे हुए हैं।

डाॅ. अमलदार “नीहार” को १४ सितंबर २०१५ को राजर्षि टंडन भवन लखनऊ में पुस्तक “रघुवंश” प्रकाश (महाकवि कालिदासकृत महाकाव्य रघुवंशम् का काव्यनिबद्ध हिन्दी भावानुवाद तथा आंशिक व्याख्या के साथ महत्वपूर्ण शोध कार्य- प्रकाशन वर्ष २०१४) के लिए उततर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा “सुब्रह्मण्य भारती” नामित पुरस्कार एवं सम्मान प्रत्र से तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सम्मानित किया। इतना ही नहीं इसी काव्य के उत्कृष्ट योगदान के लिए आपको उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम् द्वारा २१ अगस्त २०१६ को आपके आवास काव्यतीर्थ निधरियां नयी बस्ती मुलायम नगर में महेंद्र कुमार पाठक, सर्वेक्षक संस्कृत संस्थान लखनऊ द्वारा “विविध पुरस्कार” एवं सम्मान प्रत्र प्रदान किया गया। हम देश के प्रसिद्ध रचानाकर के बारे में जितना भी कहें, कम है। वर्तमान समय में डाॅ. अमलदार “नीहार” ऐसे कवि हैं, जिन्होंने अपनी निम्नलिखित प्रस्तुत रचानाओं के गागर में मोहक भाव और अर्थ का सागर भर दिया है।

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संक्षिप्त परिचय :

डाॅ. अमलदार ‘नीहार
एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग
श्री मुरली मनोहर टाउन स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बलिया(उत्तर प्रदेश) -277001

पिता : श्री सम्पति विश्वकर्मा (दिवंगत)

माता : श्रीमती अशर्फी देवी(स्वर्गीया)

जन्म : 18 अगस्त, सन् 1961(प्रमाण पत्र के अनुसार)

जन्मस्थान : ग्राम जनापुर पनियरियाँ, पोस्ट गड़ैला, जनपद जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा : आरम्भ से स्नातक स्तर तक ग्रामीण अंचल के शिक्षण संस्थानों में(सन् 1977 में हाई स्कूल, 1979 में इण्टर मीडिएट तथा 1981 में बी०ए० उत्तीर्ण)।
पुनः चार वर्ष के अन्तराल के उपरान्त पुनः अध्ययन जारी रखते हुए 1985 में एम० ए० में प्रवेश लिया और सन् 1987 में गुरुकुल काँगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार (सम्प्रति उत्तराखण्ड में स्थित) से द्वितीय वर्ष की परीक्षा सर्वोत्तम प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, पुनश्च वहीं से 1993 में पी-एच०डी०की उपाधि भी प्राप्त की।

शोध विषय : आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र की रीतिकाल-विषयक आलोचनात्मक रचनाओं का अध्ययन

विशेष : सन् 1982 से 1996 के बीच दूरसंचार विभाग में दूरभाष प्रचालक पद पर कार्यरत, सन् 1996 से अद्यतन अध्यापन सेवा

अद्यतन रचनात्मक उपलब्धियाँ :
1-कान्तार-कुसुम-उपन्यास(नज़ीबाबाद, बिजनौर से प्रकाशित मासिक हिन्दी पत्रिका “आदर्श-कौमुदी” में 1985-86 में धारावाहिक)

2-गीत-गंगा(गीत-संग्रह)-प्रकाशन वर्ष 1998

(क) वी. एल. मीडिया सोल्यूशंस, नई दिल्ली से प्रकाशित

3-इन्द्रधनुष(कविता-संग्रह)-प्रकाशन वर्ष 2011 (ISBN : 978-81-908125-7-3)

(ख) राधा पब्लिकेशंस/नमन प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित

4-रघुवंश-प्रकाश(रघुवंशम् संस्कृत महाकाव्य का काव्यमय हिन्दी भावानुवाद)-प्रकाशन वर्ष 2014 (ISBN : 978-81-7487-898-4)

5-भ्रष्टाचाराय नमो नमः(कहानी-संग्रह) -प्रकाशन वर्ष 2014(ISBN : 978-81-8129-538-5)

6-शब्दों का इण्टरव्यू(लघुकतथा-संग्रह)-प्रकाशन वर्ष 2015(ISBN : 978-81-8129-597-2)

7-आईनः-ए-ज़ीस्त(ग़ज़ल-संग्रह) -प्रकाशन वर्ष 2015 (ISBN : 978-81-8129-598-9)

8-गीत-गुंजार(गीत-संग्रह) -प्रकाशन वर्ष 2016(ISBN : 978-81-8129-683-2)

9-साहित्य : संवेदना और विचारधारा(आलोचना कृति) -प्रकाशन वर्ष-2016(ISBN : 978-81–8129–674-01)

10-उत्तम आलसी का सहज योग(व्यंग्य-संग्रह)-प्रकाशन वर्ष 2017(ISBN : 978-81-8129-747–01)

11-मेरी कविताओं में स्त्री : स्त्री का जीवन और जीवन में स्त्री(कविता-संग्रह)-प्रकाशन वर्ष 2019(ISBN : 978-81-8129-860-7)

12-नीहार-सतसई(दोहों का संग्रह) प्रकाशन वर्ष 2019(ISBN : 978-81-8129-861-4)

(ग) विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी से प्रकाशित

13-बिहारी और घनआनन्द(संपादन एवं भाष्य) -प्रकाशन वर्ष 2019 (ISBN : 978-93-87643-29-1)

14-बिहारी और घनानन्द : एक अनुचिन्तन(समीक्षण कृति) -प्रकाशन वर्ष 2021 (ISBN : 978-93-87643-30-7)

यंत्रस्थ कृतियाँ :

15-आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र और उत्तर मध्यकालीन विमर्श( आलोचना)

16-साहित्यालोचन( आलोचना कृति)

17-हृदय के खण्डहर(कविता-संग्रह)

18-नीहार-नौसई(दोहा-संग्रह)
(सभी पुस्तकें प्रकाशनाधीन, नमन प्रकाशन, वाराणसी)

दर्जनों सुपरिचित साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, व्यंग्य, गीत-ग़ज़ल, छन्द, लघुकथा, ललित निबन्ध, शोध-आलेख, चिन्तन-सृजन और दोहे आदि निरन्तर प्रकाशित।

गद्य-पद्य की विविध विधाओं में डेढ़ दर्जन से अधिक अन्य ग्रन्थ अभी अप्रकाशित।

प्राप्त सम्मान :

1-ईश्वरीय विश्वविद्यालय प्रजापति ब्रह्माकुमारी, माउण्ट आबू द्वारा आयोजित ‘मानव-पुनर्जन्म’ विषय पर अन्तर-राष्ट्रीय निबन्ध प्रतियोगिता में सहभागिता का प्रमाण पत्र(सम्प्रति पुस्तक का संशोधित नाम : पुनर्जन्म : अनन्त चेतना की लीला-यात्रा)-सन् 1985-86

2-‘काव्य-समीर’ साहित्यिक संस्था, वाराणसी द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार,सन् 1997

3-‘रघुवंश-प्रकाश'(महाकवि कालिदासकृत महाकाव्य ‘रघुवंशम्’ का काव्यनिबद्ध हिन्दी भावानुवाद) पर उ०प्र० हिन्दी संस्थान, उत्तर प्रदेश सरकार का “सुब्रह्मण्य भारती” सम्मान–सन् 2015

4-“औरैया प्रोत्साहन निधि द्वारा “सेवक स्मृति सम्मान श्री” पत्र-सन् 2016

5-“रघुवंश-प्रकाश” पर उ०प्र० संस्कृत संस्थानम् से भाषान्तर-अनुवाद हेतु “विविध पुरस्कार”-सन् 2016

6-“साहित्यिक संघ, वाराणसी” संस्था द्वारा “सेवक स्मृति सम्मान श्री” सम्मान पत्र-सन् 2016

7-मगसम राष्ट्रीय साहित्यिक मंच(मंजि़ल ग्रुप साहित्यिक मंच) दिल्ली द्वारा

(क) रचना प्रतिभा सम्मान 2016

(ख) शतक वीर एवं रचना रजत प्रतिभा सम्मान-2017

(ग) साहित्य शिरोमणि सम्मान-2021

(घ) गद्यालंकार सम्मान(वार्षिक मूल्यांकन के आधार पर) 15 अगस्त 2021

साम्प्रतिक सृजन-चिन्तन :

प्रकाशित कृतियों में “रघुवंश-प्रकाश”(19 वर्षों में सम्पन्न महाकवि कालिदासकृत महाकाव्य का काव्यनिबद्ध हिन्दी भावानुवाद तथा आंशिक व्याख्या के साथ शोध कार्य) के अलावा “भ्रष्टाचाराय नमो नमः(कहानी-संग्रह, ‘गीत-गंगा'(गीत-संग्रह), ‘इन्दधनुष’ (कविता-संग्रह), गीत-गुंजार(गीतों का संग्रह), साहित्य : संवेदना और विचारधारा(आलोचना कृति), उत्तम आलसी का सहज योग(व्यंग्य-संग्रह). मेरी कविताओं में स्त्री (कविता-संग्रह), नीहार-सतसई(दोहा-संग्रह)
विशेष पठनीय पुस्तकें हैं…
जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय के एम. ए. प्रथम सेमेस्टर के लिए बिहारी और घनानन्द की संचयित कविताओं का संपादन तथा भाष्य तत्सम्बन्धित सचेत विद्यार्थियों तथा प्रबुद्ध पाठकों-प्राध्यापकों को सन्तुष्ट करने वाला है। बिहारी और घनानन्द पर जो दूसरी समीक्षात्मक पुस्तक है, विद्यार्थियों की सहायता के लिए परिश्रमपूर्वक तैयार की गयी है। सृजन की दिशा में सम्प्रति कुल 14 पुस्तकें पूर्णत्व की ओर अग्रसर हैं और अन्य 6 पुस्तकें प्रकाशन हेतु बिल्कुल तैयार। भण्डारे में कच्चे-पक्के भोजन की तरह और भी बहुत कुछ। इन बहुत सारी अप्रकाशित कृतियों में विशेष रूप में समय-समाज तथा सम्पूर्ण जीवन-सृष्टि का ताप-संताप लिपिबद्ध करने वाले दोहों के अनेक विशाल संग्रह यदि प्रकाशित हुए तो कदाचित् उदारमना मनीषियों, रसज्ञ मीमांसकों, चिन्तकों-विचारकों और हिन्दी इतिहासकारों की दृष्टि में ‘महत्वपूर्ण उपलब्धि’ माने जायँ, जिनका संक्षिप्त विवरण निम्नवत् है…|

1-नीहार-सतसई=कुल 733 दोहे

2-नीहार-नौसई=कुल 927 दोहे

3-नीहार-हज़ारा-1072 दोहे

4-नीहार-दोहा-महासागर : प्रथम अर्णव=5128 दोहे

5-नीहार-दोहा-महासागर : द्वितीय अर्णव=5151 दोहे

6-नीहार-दोहा-महासागर=1999 दोहे(अद्यतन सृजनरत, लक्ष्य 5100 के आस-पास)

7-रसछन्दोऽलंकारचन्द्रिका (काव्यशास्त्रीय लक्षण ग्रन्थ) =42 दोहे(अद्यतन सृजन की ओर)
दिनांक : 20 अगस्त, 2021

पुस्तक-प्राप्ति :

1-आॅन लाइन अमेजन

2-नमन प्रकाशन
4231/1,अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली-110002
दूरभाष : 011-23247003, 011-23254306

3-विश्वविद्यालय प्रकाशन
पो०बाॅ० 1149, विशालाक्षी भवन, चौक, वाराणसी-221001
दूरभाष : 0542-2413741
0542-2413082

4-सरस्वती इण्टरप्राइजेज(राजेन्द्र जी)
खरौनी कोठी, विजय श्री स्वीट्स,
रेलवे स्टेशन के सामने, बलिया |

*बदलते दौर का दस्तावेज़*

नीहार के दोहे….


लकड़ी दुर्लभ, दाह को मुश्किल आग मसान।
ऐसा कौन गुनाह जो, सहे मौत अपमान।।

गंगा ने पूरे किये ‘माँ’ के अपने फर्ज़।
लाश तैरती गोद में, भारी ममता-कर्ज़।।

दिल पर पत्थर रख लिए, सहे घोर अपमान।
मानवता-शव-सीस पर काक, खींचते श्वान।।

दुबके-दुबके रह गये दिलवर शाहंशाह।
मानवता के दर्द की सबने सुनी कराह।।

धर्म नहीं पैदा करे भेद, घृणा, विद्वेष।
मानवता जो मर गयी, कहाँ बचा कुछ शेष।।

दिल की धड़कन एक-सी, एक लहू का रंग।
अनुभव सुख-दुख एक सब,जन्म-मरण के ढंग।।

एक प्रकृति की गोद यह–पैदा हुए जवान।
पंचभूत-निर्माण तनु, मरे-खपे निष्प्रान।।

भोलापन, मासूमियत, निश्छल शिशु नादान।
दुनियादारी छू गयी, छूत पाप के सान।।

चढ़ी जवानी, रंग नव, सपने सजल उमंग।
गर्म लहू, उत्ताप नव, अनगिन भाव-तरंग।।

उमर काल-रथ बैठ कर जगर-मगर जग-सैर।
कभी करे बहलाव मन, प्रीति किसी से बैर।।

मिली खुशी तो फूलकर कुप्पा मालामाल।
बदकिस्मत कुछ जन्म भर दीन-दुखी, कंगाल।।

पल-छिन ठहरे ज़िन्दगी, कहो हुबाबे-आब।
एक-एक कर पृष्ठ ज्यों पलटे पवन किताब।।

कर्म किया क्या, देख लो, साधे कितने स्वार्थ।
लिपटा पाप-मवाद में, भूल गया परमार्थ।।

घर्घर रथ यह काल का बिना रुके दिन-रात।
जहाँ थमे, परिणय वहीं ठहरेगी बारात।।

रंग बदल जर्जर जरा-दस्तक बारम्बार।
षड्मुख अरि जो उर-गुहा,करे निबल, बीमार।।

कोई सब कुछ भूलकर, चले स्वार्थ की राह।
कुछ का जीवन लोक-हित, त्राण प्राण-सन्नाह।।

कुछ में तानाशाह मन, कुछ में प्रेम अपार।
कुछ में केवल क्रूरता, कुछ करुणा-आगार।।

सार्थक उसकी ज़िन्दगी, दे सबको सुख-दान।
उसका भी कल्यान है, जिसमें जग-कल्यान।।

छीन-झपट तू क्यों करे, धरे अमानुष-भाव।
घृणा अतुल, दुर्मद सबल, मानवता-उर घाव।।

“मैं-मैं” करता रह गया, जगा न ‘जन’ से प्यार।
जाने वो दुख-दर्द क्या,रिश्ता,घर-परिवार।।

“मेरे लिए कुटुम्ब जग”,कहना क्या आसान।
तेरा जो भी आचरन, कौन भला अनजान।।

खुली आँख से देख तू, किले ख्वाब के ध्वस्त।
तू भी कोई चीज है? दारोगा जग पस्त।।

अहंकार की हार में मानवता की जीत।
घृणा अगर अपराजिता, कौन बनाये मीत।।

कब तक ठहरे ज़िन्दगी, वक़्त नदी की धार।
सिर पर काली मौत है, कौन लखे ‘नीहार’।।
रचनाकाल : 20 अगस्त, 2021
बलिया, उत्तर प्रदेश

“नीहार”-दोहा-महासागर : तृतीय अर्णव (तृतीय हिल्लोल) अमलदार ‘नीहार'”

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