जाति की राजनीति करने वाले बिरादरी का नहीं, खानदान का करते हैं भला : सुरेंद्र सिंह

बलिया। विधानसभा चुनाव से पूर्व बलिया विधानसभा सीट के भावी उम्मीदवार एवं भाजपा उपाध्यक्ष सुरेंद्र सिंह ने जाति के नाम पर वोट बटोरने वालों पर करारा प्रहार किया। कहा कि समाजवादी पार्टी तथा सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया एवं नेता खुद को कुछ जातियों के ठेकेदार बताते हैं। इसी को आधार मानकर इसबार भी नेतागण चुनावी मैदान में अपनी जीत का दावा ठोक रहे हैं। लेकिन उनका यह सपना पूरा होने वाला नहीं है। पूर्वांचल एवं बलिया की जनता कई बार गैर भाजपा सरकारों को देख चुकी है। लेकिन वोट लेने वालों ने उन्हें क्या दिया, यह वह बखूबी जानते हैं ?
पिछले विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव से ही जनता जागरुक हो चुकी है। लेकिन जातिवाद में डूबे नेता मतिभ्रम हो चुके हैं। इन्हें इस बात का अब भी ज्ञान नहीं हो रहा कि कोई भी जाति किसी नेता और पार्टी की मुट्ठी में नहीं, बल्कि वह अपना मतदान करने के लिए स्वतंत्र है। वर्तमान में आम जनता को अपने अच्छे और बुरे की समझ है।

उन्होंने सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर पर निशाना साधते हुए कहा कि जिनके दिलों में गरीबों के लिए कोई जगह नहीं, वह उनका नेता कैसे हो सकता है ? अगर ओमप्रकाश राजभर को अपनी बिरादरी के लोगों का इतना मलाल होता, तो पिछले विधानसभा चुनाव में बलिया से अपने बेटे की जगह किसी गरीब राजभर के बेटे को मैदान में उतारा होता। कहा कि जो नेता हमेशा अपनी पत्नी, भाई और बेटे के बारे में सोचता हो, वह अपने समाज का भला नहीं सोच सकता। अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए गरीबों से हमदर्दी दिखाना और जताना आम बात है।
समाजवादी पार्टी में भी पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के समय से परिवारवाद चला आ रहा है। मुलायम सिंह यादव के खानदान में जितने भी बालिग वारिस थे सबके सब विधायक, सांसद और मंत्री बन गए। हम नहीं, जनता को मूल्यांकन करने की जरूरत है। सपा में चाहे कितना भी योग्य नेता क्यों न हो, लेकिन सीएम की कुर्सी पर खानदान का कोई बारिश ही बैठ सकता है, दूसरा नहीं। इतने से सबको समझ में आ गया होगा कि इन दलों में सबसे अच्छा कौन है और हमें किस का साथ देना चाहिए ?
कुछ छुटभैया नेताओं ने प्रत्येक चुनाव में किसी बड़े दल का दामन थामकर अपना उल्लू जरूर सीधा किया हैं। इस बार भी गठबंधन हुआ है। ऐसे लोग राजनीति के चतुर व चालबाज खिलाड़ी हैं। इनसे सजग रहने की जरूरत है। कहा कि पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी इनकी दाल नहीं गलनी चाहिए। ऐसे नेताओं को गरीबी में जीवन जीने वालों के दर्द का एहसास तक नहीं होता। केवल दिखावा करते हैं। गलत निर्णय लेकर पूरे पांच साल लोग कसकते, सुबकते और सिसकते रह जाते हैं। इससे हम लोगों को बचना होगा..।

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