नियति इतनी निष्ठुर क्यों है ?

वरिष्ठ पत्रकार विद्यासागर तिवारी के निधन से जनपद में शोक
बलिया। पत्रकारिता जगत का जाना पहचाना नाम, चौथे स्तंभ के महत्वपूर्ण पिलर, योग्य कलमकार विद्यासागर तिवारी अब नहीं रहे। वह ६२ साल के थे। उनका निधन शनिवार की रात बेंगलुरु के एक निजी अस्पताल में हो गया। वह कुछ दिनोंं से बीमार थे। सरल व्यक्तित्व के धनी, मीठी वाणी से सबको आकर्षित करने वाले और देवी के सच्चे उपासक बड़े भाई का अचानक गोलोक गमन का समाचार सबको गमगीन कर दिया। घटना की सूचना मिलने के बाद जिले में शोक की लहर दौड़ गई है। कोरोना काल से लेकर अब तक कई करीबी वरिष्ठ पत्रकारों के निधन ने अत:करण को झकझोर कर रख दिया है। सभी अब यही कह रहे हैं कि नियति इतनी निष्ठुर क्यों है ?

देश व समाज को दिशा देने में पत्रकारों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाने वाले बड़े भाई विद्यासागर तिवारी स्वभाव से मृदुभाषी थे। मीडिया में उनकी पहली पहचान उनके बड़े भाई वरिष्ठ पत्रकार हरवंश तिवारी की वजह से बनी। लेकिन कलम की धार से कुछ ही दिनों में उन्होंने खुद की पहचान बना ली थी। जीवन में संघर्षो से उनका गहरा नाता जरूर रहा, लेकिन वह कभी मायूस नहीं दिखे। जब भी मिले, मुस्काराते हुए मिले। अपने स्वभाव से वह लोगों को सहज ही आकर्षित करते थे। उनका स्वभाव और अंदर का टैलेंट सबको छू जाता था। हमे भी कई बार उनसे लंबी वार्ता करने का मौका मिला और उन्हें काफी करीब से जानने और समझने का मौका मिला था। उनमें विनय और विवेक दोनों ही समाहित थे। चंद दिनों पहले उनसे हमारी बात हुई थी। वह जल्द ही बलिया आने वाले थे। वह बलिया पर कुछ लेख देने का वादा किए थे, लेकिन यह अधूरा रह गया। मुुझे नहीं पता मेरे अग्रज इतनी जल्दी हमसे दूर हो जाएंगे। सूचना मिलने और सबकुछ जानने के बाद भी मुझे घटना पर यकीन नहीं हो रहा था। इसलिए उनके बारे में कल कुछ लिख पाना कठिन था। कठिन समय में उनकी राय और दिए गए सुझावों का हमने कद्र किया।
जनपद में पत्रकारिता के बड़े स्तंभ रहे विद्यासागर तिवारी के निधन से जनपद के कलमकार ही नहीं, उन्हें जानने और चाहने वाले काफी मर्माहत हैं। अखबार से सेवा निवृत्त होने के बाद कुछ सालों से वह अपने बेटों के साथ बेंगलुरु में रहने लगे थे। अचानक तबीयत बिगडऩे पर उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां शनिवार की रात उपचार के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। यह खबर दूसरे दिन रविवार को जैसे ही मीडिया के लोगों तक पहुंची जनपद में शोक की लहर दौड़ गई।
हल्दी क्षेत्र के पुरास गांव निवासी विद्यासागर तिवारी न सिर्फ लेखनी के धनी थे, बल्कि काफी मिलनसार भी थे। पैतृक गांव पुरास से उन्हें बहुत लगाव था। गांव वालों के विशेष निवेदन पर एक बार उन्होंने पत्रकारिता के साथ राजनीतिक चोला भी पहन लिया था और गांव के प्रधान बन गए थे। लेकिन इस क्षेत्र में उनका थोड़ा भी मन नहीं लगा। वह हमेशा लेखन और अध्ययन में ही तल्लीन रहते थे। उनकी नेतृत्व क्षमता भी जबरदस्त थी। पत्रकारिता में उनकी शुरूआत दैनिक आज अखबार से हुई। बाद में वह अमर उजाला और दैनिक जागरण जैसे प्रमुख अखबारों में लंबे समय तक ब्यूरीचीफ रहे। वह हमेशा साथियों के साथ सुख-दु:ख में खड़े रहते थे। विद्यासागर तिवारी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विधि स्नातक की शिक्षा ग्रहण की थी। उनका शुरु से ही साहित्य लेखन की तरफ झुकाव रहा। अपनी लेखनी से पहचान बनाने वाले बड़े भाई विद्यासागर तिवारी की कई चर्चित खबरें और संपादकीय टिप्पणियां आज भी लोगों के दिलो-दिमाग में रची-बसी हैं। वह कुछ साल पहले दैनिक जागरण से ससम्मान सेवानिवृत्त हुए थे। विद्यासागर तिवारी अपने तीन भाइयों में सबसे छोटे थे।

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