मनियर। आर्य समाज को बहुत से लोग अभी तक नहीं समझ पाए हैं। देश में कभी हिंदू समाज की दुर्दशा थी। अंधविश्वास, छुआछूत, भेदभाव, आडंबर, रूढि़वादी परंपराएं हावी थी। ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने इन सभी बुराइयों का डटकर मुकाबला किया एवं १० अप्रैल १८७५ में आर्य समाज की स्थापना की। उक्त बातें मनियर परशुराम स्थान पर आर्य समाज के तीन दिवसीय कार्यक्रम के समापन पर मंगलवार की रात अपने प्रवचन के दौरान ज्ञान प्रकाश वैदिक जी ने कही।
उन्होंने कहा कि आर्य समाज न तो कोई धर्म है, न पंथ है, न ही कोई राजनीतिक विचारधारा है, यह वेदों के आधार पर हिंदू समाज सुधार आंदोलन है। आगे कहा कि १९वीं सदी में हिंदू समाज छुआछूत, ऊंच-नीच, जाति प्रथा आदि के सोंच में पड़ा था। नारी समाज चहरदीवारी में कैद थी। नारी को शिक्षा से वंचित कर दिया गया था। पति की मौत के बाद पत्नियों को पति के साथ चिताओं पर जलाया जाता था। इन बुराइयों के कारण एवं आपसी फूट के कारण विदेशी आक्रांताओं ने देश को गुलाम बना दिया। तब जाकर १०0 अप्रैल १८७५ को दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज की स्थापना की और इन सभी बुराइयों से मुक्ति दिलाने के लिए चल पड़े। उन्हीं के विचारों पर आर्य समाज चलता है। देवरिया से पधारी नैन श्री प्रज्ञा जी ने नारियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि आज की नारियां अपनी सुंदरता को बनाए रखने के लिए बच्चों को अपने अमृतमयी दूध पिलाने की जगह बोतल उनके मुंह में लगा देती है। यही बोतल का दूध पीते-पीते बच्चा जब बड़ा होकर बोतल का दारू पीने लगता है, तो मां को बहुत कष्ट होता है। बच्चों को अमृत पान से न वंचित करें। मां को दूध बच्चों को कई साल तक निरोग रखता है। कार्यक्रम का संचालक देवेंद्र नाथ त्रिपाठी एवं इसके आयोजक रघुनाथ प्रसाद स्वर्णकार रहे।