“बलिया बलिदान दिवस”: “मंगल” ने ब्रिटिश हुकूमत का किया था “अमंगल”.., शहीदों को शत्-शत् नमन


बलिया। इस ओजस्वी धरा का एक अदना सा सिपाही अचानक 21 मार्च 1857 को जान की परवाह किए बिना ब्रिटिश हुकूमत से बगावत कर बैठा। तब बैरकपुर के 34वीं पलटन की परेड चल रही थी और भरी बंदूक लेकर वह कतार में सामने आ गया। वह काफी दिनों से सुलग रहा था। क्योंकि अंग्रेजों ने उसका धर्म भ्रष्ट करने का काम किया था। नाम बताने की जरूरत नहीं, देश का बच्चा-बच्चा शहीद “मंगल पांडेय” की वीरता से परिचित है। एक सिपाही के लिए यह कदम असाधरण था और बगावत भी दुनिया की सबसे ताकतवर व्यवस्था के खिलाफ थी। इसी बगावत के कारण मंगल पांडेय को अग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम का पहला विद्रोही भी कहा जाता है। वह “मंगल” ही थे, जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत में “अमंगल” लाने का काम किया था।
बलिया के नगवां गांव निवासी मंगल पांडेय १८५० में बैरकपुर की एक रक्षा टुकड़ी में तैनात किए गए थे। बैरकपुर में सैनिकों को नए कारतूस दिए गए। इसके माध्यम से धर्म भ्रष्ट करने का प्रयास जारी था। चर्बी से तैयार कारतूस को मंगल पांडेय ने लेने से इंकार कर दिया और विरोध किया। तब सिपाहियों को पैटर्न १८५३ एनफील्ड बंदूक दी गई थी। इस बंदूक में बारूद भरने के लिए कारतूस को दांतों से काटकर खोलना पड़ता था। कारतूस के बाहरी आवरण में चर्बी होती थी, जो उसे नमी से बचाती थी। बताते हैं कि यह चर्बी गाय और सुअर की थी। यह ङ्क्षहदू और मुस्लिम सैनिकों कों धर्म के खिलाफ लगा और नये कारतूस मिलते ही मंगल पांडेय अपनी मातृभूमि और अपने धार्मिक संस्कार को बचाने के लिए खुद की कुर्बानी देने का फैसला ले लिया। ब्रिटिश हुकूमत के इस छोटे से प्यादे ने २१ मार्च १८५७ को वह कर दिखााया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। एक अंग्रेज अफसर की गोली मारकर हत्या कर दी, दूसरे को घायल कर दिया। इसके बाद खुद को गोली मार ली और इतिहास में सदा-सदा के लिए अमर हो गए। संयोग रहा कि मंगल पांडेय गोली लगने के बाद भी केवल जख्मी हुए थे और बाद में उनका कोर्ट मार्सल हुआ और उन्हें फांसी दे दी गई।
इतना ही नहीं यह विद्रोह अन्य देश भक्तों में जोश और उत्साह का संचार भरने का काम किया और ब्रिटिश सरकार को नेस्तनाबूत करने केे लिए देश में बगावत की लौ धधकने लगी।
बलिया की धरती से शुरू बगावत चारो तरफ दिखाई देने लगा। इसके बाद मंगल पांडेय की धरती को आज भी बागी बलिया की धरती के नाम से देश एवं विदेशों में जाना जाता है।
मंगल पांडेय के बाद क्रांतिकारी धरती के सपूतों ने आज ही के दिन १९ अगस्त १९४२ को सबसे पहले आजाद होने का गौरव हासिल किया। यहां से अंग्रेजों को भगा कर चित्तू पांडेय ने कलेक्टर की कुर्सी संभाल ली। जी हां बलिया देश में सबसे पहले १९ अगस्त १९४२ को आजाद हो चुका था। इसी दिवस को बलिया बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिवस पर उन सभी वीर शहीदों से प्रेरणा लेने और उन्हें याद कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करने की जरूरत है। बलिया की यह धरती त्याग और बलिदान के लिए दुनिया में जानी जाती है। आज की युवा पीढ़ी को यह दिवस यही प्रेरणा देता है कि जब बात अपने देश, अपने धर्म, अपनी पहचान, अपनी अस्मिता की हो, तो सामने कितनी भी बड़ी ताकत हो उससे टकराना ही असली धर्म है। दूसरी बात हम अगर बलिदान के लिए पूरी तरह समर्पित हो तो किसी भी शक्ति को पराजित करना संभव है। गर्व है हमारे जैसे लाखों बलियावासियों को जिन्होंने इस धरती पर जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त किया है। इस धरती को शत-शत नमन है।

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