औरों में अच्छाई तलाशने से पहले, खुद के अंदर पैदा करें : ज्ञान प्रकाश

बांसडीह। व्यक्ति, समाज, देश व राष्ट्र को सही दिशा देने के लिए हमें अपने विचार, व्यवहार एवं आचरण में बदलाव की जरूरत है। तभी हमारी पीढ़ी के आचरण में सुधार संभव है। अगर औरों में अच्छाई तलाशते हैं, तो खुद के अंदर अच्छी सोच पैदा करनी होगी। परिवार के मुखिया को धर्म व सच्चाई के रास्ते पर चलना होगा। खुद के व्यवहार और आचरण में सुधार के बिना परिवार को सुधारने की परिकल्पना करना गलत होगा। बिना अच्छा बने दूसरों को नहीं अच्छा बनाया जा सकता है, यह हमारे दोहरे चरित्र को दर्शाता है। उक्त बातें ज्ञान प्रकाश वैदिक जी ने प्रवचन के दौरान भक्तजनों से कही।

मनियर परशुराम स्थान पर आर्य समाज द्वारा वेद कथा एवं चतुर्वेद शतकम महायज्ञ के दौरान सोमवार की रात हुए प्रवचन में सैकड़ों श्रद्धालु भक्तगण वहां मौजूद रहे। उन्होंने परिवार एवं फैमिली की अलग अलग व््याख्या करते हुए कहा कि परिवार का मतलब परि+वार यानी परि मतलब चारों ओर का घेरा एवं वार का मतलब छाया। यानी परिवार के सदस्यों का पूरे परिवार पर छत्रछाया हो उसे परिवार कहते हैं। जबकि फैमिली का मतलब जबतक उनसे फायदा है वह फैमिली है। आज हमें परिवार बनाने की जरूरत है, न कि फैमिली। परिवार के हर सदस्य का एक दूसरे के प्रति त्याग, समर्पण एवं प्रेम की भावना होनी चाहिए, जो भावना भरत का राम के प्रति था। देवरिया जनपद से पधारी नैन श्री प्रज्ञा जी ने कहा कि हम सुविधाओं में जीते हैं। महंगी मोबाइल, गाड़ी आदि रखते हैं। बावजूद तनाव में जीते हैं। चेहरे पर मुफ्त में मिलने वाली इस्माइल तक नहीं होती। चेहरे पर स्माइल नेचुरल गिफ्ट है। इसका अमीरी-गरीबी से कोई रिश्ता नहीं है। उन्होंने भी परिवार सुधार की बात कही तथा परिवारों के संस्कारों का जिक्र किया। युवा पीढ़ी की जीवन शैली पर उन्होंने चिंता व्यक्त की। यहां पधारे लालमणि जी ने अनेक भजन प्रस्तुत किए तथा आधुनिक चकाचौंध की जिंदगी पर कड़ा प्रहार किया। कार्यक्रम का संचालन देवेंद्र नाथ त्रिपाठी ने किया।

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