रवि राय
गोरखपुर। विगत चार वर्ष से अपने पैतृक शहर गोरखपुर से विस्थापित होकर NCR में रह रहा हूँ। अब तो ग्रेटर नोएडा में ही स्थायी बसेरा है, सो अब कभी- कभार किसी ज़रूरी काम से ही गोरखपुर जाना होता है। काम ज़रूरी और वक्त भी कम होता है, इसलिए शहर में घूमने का अधिक मौक़ा नहीं मिलता। लोग बताते हैं कि गोरखपुर बदल गया है।गोरखनाथ की तंग सड़क अब काफ़ी चौड़ी हो गई है। मोहद्दीपुर में नए-नए और बड़े होटल्स खुल गए हैं। तारामंडल वाले एरिया में पूरी रौनक हो गई है। शहर का कायाकल्प हो रहा है। रात में सड़कों पर सोडियम लाइट के बॉक्स ही नहीं, बल्कि उसके खम्भे पर लिपटी रंग-बिरंगी रौशनी की लड़ियाँ भी जगमगाती हैं। सुनकर अच्छा लगता है , गर्व भी होता है और कहीं न कहीं कसक सी भी होती है कि जिस शहर में पैदा हुआ, पढ़ाई-लिखाई की, नौकरी की और यारबाज़ी की अब उसे छोड़कर एक अनजान जगह में रह रहा हूँ। कहा जाता है कि “वक्त की हर शै गुलाम, वक्त का हर शै पे राज”
मुझे अपने दोस्तों के क़रम से गोरखपुर शहर के स्थानीय अखबार मेरे मोबाइल पर भोर में चार बजे तक मिल जाते हैं। कुछ तो रात के एक से डेढ़ बजे ही स्क्रीन खड़ा कर देते हैं ।
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आज शहर की एक खबर ने मुझे हीलाकर रख दिया है। कानपुर के तीन युवक अपने दोस्तों के बुलाने पर गोरखपुर घूमने गए थे और तारामंडल के पास एक होटल में ठहरे थे। रात साढ़े बारह बजे पुलिसवालों ने उन्हें सोते से जगाकर चेकिंग की आड़ में परेशान किया और उनमें से एक मनीष गुप्ता को इतना मारा कि उसकी मौत ही हो गई। देखा जाए तो गोरखपुर शहर अब सीएम सिटी कहलाता है।सुरक्षा कारणों से यहां आने-जाने वालों की गहन जांच भी ज़रूरी है। पर क्या आगंतुकों की जांच ऐसे होती है ?
मैं अपनी बैंक की नौकरी में और बाद में भी देश के कोने-कोने में घूम चुका हूँ। कोलकाता, चेन्नै, मुंबई , श्रीनगर, जम्मू, भुवनेश्वर से लेकर केरल, गोआ, अंडमान, राजस्थान, बिहार जैसे तमाम प्रदेशों के बड़े- बड़े शहरों में भी हर जगह होटल में ही टिकता था।कभी दोस्तों के साथ, कभी अकेले तो कभी परिवार के साथ। दिल्ली से अधिक संवेदनशील कौन सा शहर है ? यहां भी पहले कई बार पहाड़गंज, करोलबाग , महिपालपुर आदि के होटलों में कई-कई दिन रहा। रूम में चेक-इन से पहले होटल के रिसेप्शन पर ही आईडी मांग लेते हैं। बिना आईडी तो आपको रूम ही नहीं मिलेगा। एक बार तो मेरा पर्स चोरी हो जाने की वजह से मुझे बहुत झेलना पड़ा । मेरी सारी आईडी उसी में थी। इसी होटल में ठहरने की अपनी पुरानी तारीख बताने और रिकार्ड से उसकी तस्दीक के बावजूद मोबाइल की गैलरी में सेव्ड आधार कार्ड की बिना पर ही किसी तरह रूम मिला।
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हुज़ूर, आप कड़ाई करो, पूरी कड़ाई करो। एक भी गलत आदमी शहर में न घुसे। आईडी के लिए तो दिल्ली मुंबई में होटल वाले ही पुलिसिया धमक से थर्राए रहते हैं कि उनकी खुद की हिम्मत गलत आदमी को टिकाने की नहीं होती। सीसी टीवी कैमरे अनिवार्यतः लगे ही रहते हैं।
बावजूद इसके अगर शक हो तो आगन्तुक को उठाओ, पूछताछ करो, थाने ले जाओ, शक हो तो जेल में डाल दो न भाई। पड़े तो हैं हज़ारों जेल में शक या तुम्हारी सनक की बिना पर। सड़ रहे हैं। अदालतें जब तुम्हें थपड़ियाती हैं तब छोड़ते भी हो उन्हें, चोट्टे !
पर इस तरह ऐसी अंधेरगर्दी ? लानत है लानत !
अब मनीष गुप्ता की पुलिसिया पिटाई के कलंक से शर्मसार मेरा गोरखपुर किस मुंह से कह सकेगा आइए यहां – घूमिये , टहलिए और खुश हो जाइए कि आप गोरखपुर में हैं ?
घटना में शामिल पूरे पुलिस अमले को सस्पेंड कर उनके खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया है। मनीष परिवार का इकलौता बेटा था।