सियासी मैदान : सबकी नजर मुख्तार की गद्दी पर

हार-जीत में अखिलेश की होगी अहम भूमिका..
अखिलानंद तिवारी

मऊ। यूपी विधानसभा चुनाव-2022 की सियासी जंग एक तरह से जारी है। नित नये समीकरण बन-बिगड़ रहे हैं। इस बीच एक सीट सुर्खियों में आ गई है। यह सीट है मऊ। पूर्वांचल की इस चर्चित सीट से मौजूदा विधायक का टिकट बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने काट दिया है। ऐसा कर पिछले ढ़ाई दशक से इस सीट पर काबिज बाहुबली विधायक मुख्तार को करारा झटका दिया है। इसलिए राजनीतिक गलियारे में चर्चाओं का बाजार गर्म है। इस सीट की सियासी पृष्ठभूमि अब काफी बदल चुकी है। वैसे अब तक रहा यही है कि मुख्तार जिधर चले हवा उधर बही। इतना ही नहीं वह जिस दल से मैदान में खड़ा हुए, जनता ने खुलकर समर्थन किया और सीट भी उसी दल की होकर रह गई। इस सीट पर परिवर्तन और मुख्तार को गद्दी से हटाने तैयारी चल रही है। कह सकते हैं कि माफिया मुख्तार अंसारी का राजनैतिक कैरियर दांव पर लगा है।

जरायम की दुनिया से राजनीति में कदम रखने वाले मुख्तार अंसारी से पूरे पूर्वांचल की राजनीति कमोवेश प्रभावित होती है। कुछ जिलों में अंसारी बंधुओं का खास प्रभाव है। इस बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की माफिया के विरूद्ध अनवरत कार्रवाई एवं बसपा मुखिया द्वारा टिकट काटे जाने के बाद मुख्तार अंसारी का राजनीतिक समीकरण फेल हो सकता है। इसलिए मुख्तार के करीबी, समर्थक और कार्यकर्ता अंदर ही अंदर राजनीतिक गोटी बिछाने में लग गए हैं। हालांकि मुख्तार के गढ़ में और किसी का पताका फहराना इतना आसान नहीं है। इस सीट से मुख्तार ने दो बार निर्दल उम्मीदवार रहते हुए जीत दर्ज की है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो वर्ष २०२२ के विधानसभा चुनाव में अगर मुख्तार को हराना है, तो कुछ विशेष रणनीति तैयार करनी होगी। सपा, बसपा ,कांग्रेस और भाजपा को कुछ अलग करना होगा। यह तय है कि इस सीट पर मुख्तार की जीत और हार सपा मुखिया अखिलेश यादव पर काफी हद तक निर्भर करेगी। विधायक मुख्तार अंसारी के भाई पूर्व विधायक सिबगतुल्लाह अंसारी के सपा में सदस्यता ग्रहण करने के बाद अब सपा नेता एवं कार्यकर्ता भी उहापोह में हैं। इस सीट पर सपा ने अगर वाक ओवर ले लिया, तो मुख्तार की जय पक्की मानी जा सकती है और अगर उम्मीदवार खड़ा किया तो सियासी घमासान को कोई नहीं रोक सकता ।

विधायक मुख्तार अंसारी से आमने-सामने टक्कर लेने के लिए बसपा प्रमुख ने प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को इस सीट से प्रत्याशी घोषित कर मैदान में उतारा है। भाजपा और सपा ने अपना पत्ता नहीं खोला है। मुख्तार के खिलाफ सभी किसी दमदार प्रत्याशी को मैदान में उतारना चाहते हैं।
मुख्तार अंसारी के राजनीतिक सफर पर एक नजर डालें तो वर्ष १९९६ में पहली बार बसपा के टिकट से मुख्तार अंसारी विधायक चुने गए। इसके बाद वर्ष २००२ और २००७ में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजय पताका फहराया। वर्ष २०१२ में खुद अंसारी बंधुओं ने कौमी एकता दल का गठन कर उसीके झंडे और डंडे के नीचे चुनाव लड़ा और विजय हासिल की। पहली बार के बाद कभी पराजय का मुंह न देखने वाले मुख्तार को एक बार फिर २०१७ में बसपा ने टिकट दिया और मोदी लहर में भी जीत दर्ज की। मुखतार को हराने के लिए समय-समय पर प्रमुख दल दोस्त और दुश्मन बनते रहे, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा।

लोगों की मानें तो जीत की सच्चाई बस इतनी सी है कि मुख्तार अंसारी मऊ सदर क्षेत्र में रहने वाले ज्यातादर लोगों के दिलों में राज करते है। अब इनसे दूर करना और मुख्तार को पटकनी देना नामुमकिन लगता है। बसपा मुखिया द्वारा मुख्तार को माफिया बता मऊ का टिकट काटना और यहां से भीम राजभर को मैदान में उतारना राजनीति में हलचल पैदा करने वाला है। वैसे उसे यह दांव उल्टा भी पड़ सकता है। मऊ की राजभर बिरादरी अपना नेता ओमप्रकाश राजभर को मानती हैं। भीम राजभर बिरादरी के कितने वोट ले सकेंगे यह देखने वाली बात होगी।मुख्तार के अब तक न हारने के पीछे और भी कई वजहें हैं। खैर मुखतार के गढ़ में किसी बड़े सियासी चक्रव्यू के जरिए ही नया सवेरा लाया जा सकता है यह चक्रव्यूह कौन रचेगा इसके लिए दिसम्बर तक का इंतजार करें। मुख्तार एआइएमआइएम से भी मैदान में आ सकते हैं।
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दांत के दर्द से बेचैन थे, इलाज के बाद जेल में शिफ्ट
मऊ। पंजाब से सात अप्रैल २०२१ को यूपी के बांदा जेल लाए गए बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी बीते सोमवार की रात दांत के दर्द से बेचैन थे। दूसरे दिन पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बीच बज्र वाहन से उपचार के लिए मेडिकल कालेज ले जाया गया, जहां दंत रोग विशेषज्ञा डा. शरद के नेतृत्व में चार विशेषज्ञों की टीम ने मुख्तार का इलाज किया। इसके बाद उसी दिन सायंकाल मुख्तार अंसारी को पुन: जेल भेज दिया।

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