“”बेसिक विद्यालयों का औचक निरीक्षण किसी पुलिस दबिश और आयकर विभाग के रेड से कम नहीं “”

निरीक्षण शब्द को बेसिक विद्यालयों में किसी पुलिस दबिश और आयकर विभाग के रेड से इस समय कम नहीं देखा जा रहा है। हां थोड़ा स्वरूप अलग जरुर होता है पर दोनों का उद्देश्य एक ही होता है।इस समय बेसिक विद्यालयों में निरीक्षण हेतु “शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध नीति”अपनायी जा रही है। बड़े स्तर के निरीक्षकों की तुलना में छोटे स्तर के निरीक्षक बड़े घातक दिखाई दे रहे हैं।इन छोटे स्तर के निरीक्षकों के साथ साथ चलने वाले अपने विद्यालय पर बिल्कुल उपस्थित न रहने वाले शिक्षक जो निरीक्षकों के पायलट बनकर फाईल ढोने का कार्य बड़े ही गर्व से कर रहे हैं वे शिक्षकों के लिए महा विनाशक प्रमाणित साबित हो रहे हैं।ये पायलट(शिक्षक) निरीक्षण के समय निरीक्षक कम ज्यादा ये ही उपस्थित शिक्षकों से पुछताछ पत्रावलियों का निरीक्षण ज्यादा करते हुए दिखाई दे रहे हैं। यदि निरीक्षण के समय यदि कोई शिक्षक 10मिनट किन्हीं कारणों से उपस्थित नहीं है,वह रास्ता में साधन न मिलने, क्रासिंग बंद होने के कारण देर से है,तो पायलट द्वारा सीधे मोबाइल पर फोन करके बताया जाता है कि साहब विद्यालय पर निरीक्षण कर रहे तुम 10मिनट जल्द आओ।वह शिक्षक पायलट की बात सुनकर मानसिक संतुलन खो देता है और अपनी जान हथेली पर रखकर 80-90 प्रति किमी की गति से विद्यालय की तरफ मोटरसाइकिल चलाता है। जिसके कारण विगत वर्षों में दुर्घटना से कई शिक्षकों की जीवन लीला समाप्त हो गयी।
यदि इनका बस चले तो पुरा विद्यालय ही सीज कर दे,न कोई बाहर निकल सके न कोई अन्दर जा सके। हां यदि इनके चेहरे की चमक पर गौर किया जाए तो विद्यालय की कमियों के हिसाब से घटती बढ़ती रहती है। यदि कोई अनुपस्थित मिला तो ठीक वरना खाते की खुदाई शुरू हो जाती है।
अखबार की खबरें समाज को बताना ही नहीं चाहती कि बेसिक विद्यालयों के शिक्षक किन परिस्थितियों से जुझ रहे हैं। ग्रामीण परिवेश में पहली प्राथमिकता शिक्षा नहीं दो वक्त की रोटी होती है । अखबार वालों को तो समाज को बताना ही नहीं है कि किस प्रकार बेसिक शिक्षकों ने जातिवादी व्यवस्था, अवकाश के दिन उपस्थित रहकर शासन की अति महत्वाकांक्षी योजना जीवन की दो बूंद पोलियो ड्रॉप पिलाकर इसको जड़ से समाप्त कराया। ग्रामीण परिवेश में यदि बालिका शिक्षा बढ़ी है तो इन्ही बेसिक शिक्षकों और अभिभावकों के आत्म विश्वास पर।
इतने चौतरफा दुष्प्रचार के बाद भी यदि बेसिक विद्यालय अस्तित्व में है तो इन्ही बेसिक शिक्षकों की दम पर। कल्पना करके देखें यदि किसी निजी विद्यालय का दुष्प्रचार हुआ तो वह विद्यालय दो वर्षों के अन्दर बन्द हो गया।जो निजी विद्यालय जिन्दा है वे अपने प्रचार व शिक्षकों के अच्छे कर्मों से। इतने अनन्त निरीक्षणों के बाद भी (निरीक्षण कर्ता के रूप में विभागीय अधिकारियों, प्रशासनिक अधिकारियों के अतिरिक्त लेखपाल, सेक्रेटरी, सफाई कर्मचारी) बेसिक शिक्षक ग्रामीण परिवेश के आर्थिक रूप से सबसे कमजोर वर्गों के बच्चों को शिक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं।
फिर क्या औचित्य है ऐसे निरीक्षणों का जहां शिक्षा के विकास की कम, आर्थिक विकास की बातें ज्यादा हो रही है। जिसके कारण शिक्षक भयमुक्त न रहकर शारीरिक और मानसिक रूप से ग्रसित है।

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