यूपी में क्या खत्म हो गया बाहुबलियों का दौर ?*






*2024 के सियासी पिच पर नहीं नजर आ रहे माफिया*
गाजीपुर। यूपी खासकर पूर्वांचल की राजनीति में शुरू से ही माफिया एवं बाहुबली नेताओं का दबदबा रहा है। ऐसे कई सफेदपोश रहे हैं, जिनकी उत्तर प्रदेश ही नहीं आस-पास के प्रांतों में भी तूती बोलती थी। देखा जाए तो मौजूदा समय में ऐसे सफेदपोश अब सियासी पिच से गायब नजर आ रहे हैं। चुनावी रण से दूर होने का एक कारण यह भी है कि कई बाहुबली नेताओं का निधन हो चुका है। जबकि बचे नेता वर्तमान में जेल की सलाखों के पीछे हैं।
पिछले दो चुनावों में लगातार जीत के बाद योगी सरकार ने चुन- चुन कर माफिया एवं बाहुबली नेताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई की है। बदनाम एवं चिन्हित नेताओं से प्रमुख राजनीतिक दल भी दूरी बना चुके हैं। ऐसे में कई बाहुबलियों की राजनीतिक विरासत भी खत्म होती नजर आ रही है।
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा प्रदेश के पश्चिमी छोर से लेकर पूर्वांचल में माफियाओं की अलग सत्ता चलती थी। जिसके सामने सभी नतमस्तक थे। आम जनता में बाहुबलियों का डर और भय इस कदर व्याप्त था कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव मैदान में उतरे उसकी जीत सुनिश्चित मान ली जाती थी। इन माफियाओं के खिलाफ प्रतिद्वंदी उम्मीदवार चुनावी रण में कमजोर पड़ जाता था। लेकिन यूपी में इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में बाहुबलियों का तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है।

*बाहुबली धनंजय सिंह की उम्मीदों पर फिरा पानी*
जौनपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे बाहुबली धनंजय सिंह को मिली सजा ने सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। सपा ने बाबू सिंह कुशवाहा को जौनपुर से प्रत्याशी बनाकर धनंजय की पत्नी के चुनाव लड़ने की उम्मीदों का झटका दे दिया है।

*पूर्वांचल के मुख्तार अंसारी का निधन व अतीक व अशरफ की हत्या*
पूर्वांचल के बाहुबली व माफिया मुख्तार अंसारी का निधन हो चुका है, तो अतीक अहम और उनके भाई अशरफ की हत्या हो चुकी है। मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी जरूर गाजीपुर लोकसभा सीट से सपा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे हैं। लेकिन अतीक अहमद के परिवार से कोई भी किस्मत नहीं आजमा रहा है। विजय मिश्रा, रमाकांत यादव, अतुल राय और रिजवान जहीर जैसे बाहुबली सलाखों के पीछे हैं। डीपी यादव, गुड्डू पंडित, करवरिया बंधु जैसे बाहुबलियों से राजनीतिक दल दूरी बनाए हुए है।

*बृजेश सिंह के परिवार से किसी को नहीं मिला टिकट*
बाहुबली बृजेश सिंह और उनके परिवार से भी किसी को टिकट नहीं मिला है। उधर बृजभूषण सिंह के टिकट पर भी सस्पेंस बरकरार है। अमरमणि त्रिपाठी के बेटे अमन मणि ने कांग्रेस का दामन जरूर थामा, लेकिन टिकट नहीं मिल सका। कुंडा से विधायक रघुराज प्रताप सिंह ने अपने किसी भी करीबी को चुनाव मैदान में अभी तक नहीं उतारा है। इस तरह 2024 के लोकसभा चुनाव में बाहुबली नेता ना के बराबर दिखाई दे रहे हैं।
बता दें कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में अस्सी के दशक में बाहुबली नेताओं का सियासी दखल बढ़ना शुरू हुआ और नब्बे के दौर में उनकी तूती बोलती थी। हालत यह हो गई कि बाहुबली नेताओं के सामने कोई चुनावी संग्राम में उतरना ही नहीं चाहता था। पश्चिम यूपी से लेकर पूर्वांचल तक में कुछ साल पहले तक बाहुबली नेताओं का पूरी तरह से दबदबा रहा है। हालांकि सूबे की सियासत ने करवट ली और माननीयों से जुड़े मुकदमों में तेज हुई पैरवी ने बाहुबलियों की कमर तोड़ने में अहम भूमिका निभाई। वर्तमान समय में बाहुबली इस दुनिया में नहीं हैं और जो बचे हैं वह सलाखों के पीछे हैं। यही वजह है कि इस चुनाव में बाहुबलियों की दखलंदाजी नहीं दिखाई दे रही है। एक तरफ जहां
पश्चिमी यूपी में डीपी यादव का सियासी दबदबा था। नोएडा के रहने वाले पूर्व मंत्री डीपी यादव बदायूं से चुनाव लड़ते रहे हैं, लेकिन बसपा और सपा ने किनारा किया तो उनकी सियासी जमीन खिसक गई। डीपी यादव इस बार अपने बेटे के लिए टिकट चाहते थे, लेकिन सपा और बीजेपी दोनों ने ही उन्हें टिकट नहीं दिया। इसी प्रकार गुड्डू पंडित बुलंदशहर के रहने वाले हैं, लेकिन अलीगढ़ से लेकर फतेहपुरी सीकरी तक से चुनाव लड़ चुके हैं। बाहुबलियों में इनका नाम में शामिल हैं। इस बार उन्हें किसी भी पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया है। डीपी यादव और गुड्डू पंडित दोनों ने ही पश्चिमी यूपी के बड़े बाहुबली नेताओं के रूप में पहचान बनाई थी, लेकिन इस बार चुनावी पिच से बाहर हैं।

उधर छह बार मऊ से विधायक रहे बाहुबली मुख्तार अंसारी की पूर्वांचल में तूती बोलती थी, खासकर गाजीपुर, मऊ और आजमगढ़ क्षेत्र में मुख्तार का असर देखने को मिलता था। गाजीपुर से मुख्तार के भाई अफजाल अंसारी सांसद हैं, तो उनके करीबी अतुल राय घोसी से चुनाव जीते थे। मुख्तार का हाल ही में निधन हो गया है, लेकिन उनके भाई अफजाल अंसारी चुनाव लड़ रहे हैं। इन दिनों अतुल राय जेल में बंद हैं और घोसी सीट से उन्हें किसी भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया है। इसके चलते वह चुनाव मैदान से पूरी तरह बाहर हो गए।

*एक वक्त था जब अतीक के मर्जी के बिना परिंदा भी पर नहीं मारता था*
इसी को वक्त की मार कहते हैं, एक समय था जब अतीक अहमद की दबंगई का आलम यह था कि प्रयागराज के इलाके में उनके मर्जी के बिना परिंदा भी पर नहीं मारता था। फूलपुर सीट से अतीक सांसद रहे, लेकिन पिछले साल प्रयागराज में उनकी और उनके भाई अशरफ की हत्या कर दी गई। अतीक के दो बेटे अभी भी जेल में बंद हैं और उनकी पत्नी फरार चल रही हैं। इसके चलते अतीक के परिवार से कोई भी सदस्य इस बार चुनावी मैदान में नजर नहीं आ रहा है। अब अतीक का सियासी साम्राज्य खत्म होता नजर आ रहा है।
उधर अपहरण, रंगदारी के मामले में पूर्व सांसद धनंजय सिंह को सात साल की सजा होने के चलते सियासी पिच से बाहर होना पड़ा है। धनंजय सिंह जौनपुर सीट से चुनावी मैदान में उतरना चाहते थे, लेकिन उन्हें सजा हो गई। इसके बाद अपनी पत्नि को चुनाव लड़ाने की जुगत में थे। माना जा रहा था कि सपा धनंजय की पत्नि को जौनपुर सीट से टिकट दे सकती है, लेकिन रविवार को बाबू सिंह कुशवाहा को प्रत्याशी बना दिया। इसके चलते धनंजय सिंह इस बार लोकसभा चुनाव मैदान में नजर नहीं आएंगे।
बता दें कि कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे बाहुबली अमरमणि त्रिपाठी ने जेल में रहते हुए अपने भाई अजीतमणि त्रिपाठी को लोकसभा का चुनाव लड़ाया था। बेटे अमनमणि को विधायक बनवाया था, लेकिन इस बार उनके साथ बड़ा खेल हो गया। अमनमणि त्रिपाठी ने कांग्रेस का दामन थामा और महाराजगंज सीट से टिकट मांग रहे थे, लेकिन कांग्रेस ने उनकी जगह चौधरी वीरेंद्र को प्रत्याशी बना दिया। इसके चलते अमरमणि के परिवार से कोई भी चुनावी रण में नहीं है।

*रमाकांत-उमाकांत पर लगा राजनीतिक ग्रहण*

यूपी के जौनपुर जिले की बात करें तो शाहगंज रेलवे स्टेशन स्थित जीआरपी थाने के 1985 के सिपाही हत्याकांड मामले में आजीवन कारावास की सजा पा चुके बसपा के पूर्व सांसद उमाकांत यादव भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे उमाकांत यादव अब आजीवन सजा काट रहे हैं। उमाकांत ही नहीं उनके भाई रमाकांत यादव जेल में बंद हैं। चार बार के सांसद और पांच बार के विधायक बाहुबली नेता रमाकांत यादव फतेहगढ़ जेल में बंद हैं और आजमगढ़ सीट से धर्मेंद्र यादव चुनाव लड़ रहे हैं। नब्बे के बाद से पहली बार रामकांत परिवार चुनावी मैदान से बाहर है।

*विजय मिश्रा और करवरिया बंधु बाहर*

आगरा जेल में बंद ज्ञानपुर के पूर्व विधायक विजय मिश्र की लंबे समय तक राजनीतिक तूती बोलती थी। हत्या, लूट, अपहरण, दुष्कर्म, एके-47 की बरामदगी जैसे अपराधों से नाता रहा। चार बार विधायक रहे विजय मिश्र को वाराणसी की एक गायिका के साथ दुष्कर्म के मामले में 15 साल की सजा हो गई। इस बार के चुनावी मैदान से विजय मिश्रा बाहर हो गए हैं। इसी तरह इलाहाबाद में अतीक अहमद को सियासी चुनौती देने वाले करवरिया बंधू भी इस बार के चुनावी मैदान से नदारद हैं। अतीक के सामने कोई चुनाव लड़ने को तैयार नहीं होता था। तब करवरिया बंधु ही मैदान में उतरे थे। फूलपुर के पूर्व सांसद कपिलमुनि करवरिया व उनके छोटे भाई पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की गिनती भी बाहुबली नेताओं में होती रही है, लेकिन इस बार कोई बड़ा नाम प्रभावी नहीं दिख रहा है।

*हरिशंकर तिवारी के बेटे चुनाव मैदान में*
पूर्वांचल में एक समय हरिशंकर तिवारी का पूरी तरह से दबदबा था। हरिशंकर तिवारी की गिनती बाहुबली नेता के तौर पर होती थी, लेकिन इस बार के चुनावी मैदान में हरिशंकर तिवारी के बेटे भीम शंकर तिवारी को डुमरियागंज सीट से सपा ने प्रत्याशी बनाया है। इसके अलावा पूर्वांचल में दूसरा बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के बड़े भाई अफजाल अंसारी को सपा मुखिया अखिलेश यादव ने टिकट देकर गाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा है। बुंदेलखंड में डकैत ददुआ उर्फ शिव कुमार पटेल की सियासी तूती बोला करती थी। मिर्जापुर से उनके भाई बाल कुमार पटेल सांसद रह चुके हैं। इसके बाद बांदा सीट से भी चुनाव लड़े। लेकिन इस बार चुनाव मैदान में नहीं नजर आ रहे हैं।
हमीरपुर के कुरारा गांव के रहने वाले अशोक चंदेल बाहुबल के दम पर चार बार विधायक और एक बार सांसद रहे। अशोक चंदेल इस समय एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या के मामले में आगरा जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान में नहीं हैं. ऐसे ही फर्रुखाबाद के इंस्पेक्टर हत्याकांड मामले में मथुरा जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहे माफिया अनुपम दुबे का प्रभाव इस बार चुनाव में नहीं दिखेगा। बीजेपी के कद्दावर नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड में पूर्व विधायक विजय सिंह छह वर्षों से जेल में बंद हैं। विजय सिंह का दमखम कमजोर पड़ चुका है।
उन्नाव के बाहुबली कुलदीप सेंगर जेल में बंद जबकि एक समय उनकी तूती बोलती थी। इस तरह प्रतापगढ़ जिले में रघुराज प्रताप सिंह की तूती बोला करती थी। उनके रिश्ते में भाई अक्षय प्रताप सिंह सांसद रह चुके हैं। इस बार चुनावी मैदान में नहीं उतरे। इसी तरह बृजभूषण शरण का अपना गोंडा, कैसरगंज में दबदबा है, लेकिन बीजेपी ने अभी तक उन्हें उम्मीदवार …है। इसी क्षेत्र में बाहुबली और तीन बार के सांसद रिजवान जहीर जेल में बंद हैं, जिसके चलते चुनावी मैदान से बाहर हैं। माफिया बृजेश सिंह का पूर्वांचल में अपना दबदबा है, लेकिन इस बार उनके परिवार से किसी को टिकट नहीं मिला है। ऐसे में चुनावी मैदान से बाहर हैं।





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