वामन रूप धारण किए श्रीहरि विष्णु को राजा बलि ने तीन पग भूमि किया दान


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गुरु शुक्राचार्य के मना करने के बाद भी राजा बलि ने वचन का किया निर्वहन
बलिया। नगर से सटे अगरसंडा गांव में चल रहे संगीतमय श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ के चौथे दिन रविवार की रात देवरिया जनपद से पधारे आचार्य पंडित सीताराम तिवारी (गुरुजी) ने दैत्यराज बलि एवं वामन अवतार का विस्तार रूप से प्रकाश डाला।
कहा कि देवताओं के राजा इंद्र को दैत्य राज बलि की इच्छा का ज्ञान होता है कि बलि सौ यज्ञ पूरे करने के बाद स्वर्ग को प्राप्त करने में सक्षम हो जाएगा। इंद्र भगवान तब विष्णु की शरण में जाते है। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते है और वामन रूप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते है। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद ऋषि कश्यप के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती है, जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। तब भगवान विष्णु भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन माता अदिति के गर्भ से प्रकट हो अवतार लेते हैं और ब्रह्मचारी ब्राह्मण का रूप धारण करते है। महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं। वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश का दंड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव ने जनेऊ तथा कमंडल, माता अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष की माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए। तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते है। उस समय राजा बलि नर्मदा के उत्तर तट पर अंतिम यज्ञ कर रहे होते है। वामन अवतारी श्रीहरि राजा बलि के यहाँ भिक्षा मांगने पहुंच जाते है। ब्राह्मण बने भगवान विष्णु भिक्षा में तीन पग भूमि मांगते है राजा बलि दैत्यगुरु शुक्राचार्य के मना करने पर भी अपने वचन पर अडिग रहते हुए विष्णु को तीन पग भूमि दान में देने का वचन कर देते है। आयोजक भोला चौधरी, यजमान के रूप में शिवनारायण यादव, गिरजा देवी समेत सैकड़ों लोगों ने देर रात तक कथा का रसपान किया।
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