दो साल बाद यहां भी शुरू हुई पंचकोसी परिक्रमा..

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने शुरू की थी पांच दिन की यात्रा, ऋषियों ने कराए थे अलग-अलग प्रकार के भोजन..

अंतिम पड़ाव : बक्सर (बिहार) के चरित्रवन में लाखों श्रद्धालु ग्रहण करेंगे बाटी- चोखा का प्रसाद..
बक्सर/नरहीं। कोरोना महामारी में दो साल से बंद चल रही पंचकोसी परिक्रमा इस साल बीते बुधवार से शुरू है। इससे यूपी- बिहार बॉर्डर पर चहुंओर उत्साह एवं खुशहाली नजर आ रही है । प्राचीन परंपरा के मुताबिक महर्षि विश्वामित्र की तपोभूमि बक्सर में हर साल लगने वाला पंचकोसी परिक्रमा मेले का स्वरूप पहले की अपेक्षा काफी व्यापक रूप ले लिया है। इस बार अधिक संख्या में लोग शामिल हुए हैं। मेले का अंतिम पड़ाव 28 नवंबर को बक्सर (बिहार) के चरित्रवन में सम्पन्न होगा। जिसमें लाखों श्रद्धालु शिरकत कर बाटी- चोखे का प्रसाद ग्रहण करेंगे।
पंचकोसी परिक्रमा यात्रा बुधवार को बक्सर के उत्तरायण गंगा स्थित रामरेखा घाट पर जल भरी के साथ शुरू हुआ। अहिरौली गांव में स्थित माता अहिल्या के दर्शन- पूजन के बाद श्रद्धालु गुरुवार को ब्रह्मर्षि नारद के आश्रम नदांव पहुंचा। 26 नवंबर को यात्रा का तीसरा पड़ाव भार्गव ऋषि के आश्रम भभुअर में होगा। 27 नवंबर को जत्था का चौथा पड़ाव उद्धालक ऋषि के आश्रम बड़का नुआंव में होगा। 28 नवंबर को पांचवा आखिरी पड़ाव सबसे महत्वपूर्ण बक्सर के चरित्रवन में होना है। यहां दूर-दराज से आए लाखों श्रद्धालु लिट्टी -चोखा का प्रसाद बनाएंगे और सामूहिक रूप से ग्रहण करेंगे। देखा जाज तो पंचकोसी परिक्रमा मेला अपने आप में एक अनूठा मेला है, जहां पांच दिनों में पांच कोस की दूरी तय कर पांच अलग-अलग स्थानों पर पड़ाव डाले जाते हैं। मेले में हर जगह अलग प्रकार के भोजन ग्रहण करने की परंपरा सदियों पुरानी है। कहा जाता है कि बक्सर में महर्षि विश्वामित्र के आग्रह पर आए भगवान श्रीराम ने ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों का नरसंहार करने के बाद किन्हीं कारणों से जिन ऋषियों से नहीं मिल पाए थे। बाद में आकर उनसे मिलने के लिए पांच दिनों की यात्रा कर पांच ऋषियों के आश्रम में गए थे। वहां रात विश्राम कर उन्होंने सबका आशीर्वाद ग्रहण किया था। तब ऋषियों द्वारा श्रीराम के स्वागत में जिन भोज्य पदार्थों को खिलाया गया था। उसी का अनुसरण करते हुए आज भी पांचों स्थानों पर प्रसाद वितरण की परंपरा सदियों पुरानी है और इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आज भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु पंचकोशी मेले में उमड़ते हैं।

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