गाजीपुर। स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार एवं साहित्यकार सर्वोदय श्रीकृष्णा राय “हृदेयश” की जयंती गौतम आश्रम हृदेयश पथ पर मनाई गई। इस मौके पर विचार गोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।
विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. रिचा राय ने कहा कि हृदेश जी संस्कृत निष्ठ कवि थे। संस्कृत प्रेम और मानवतावाद उनके जीवन और दर्शन में देखा जा सकता था।गाजीपुर में नागरी प्रचारिणी सभा स्थापित करके जेल में पुरुषोत्तम दास टंडन को दिए वचन का पालन करते हुए हिंदी के प्रचार प्रसार में उन्होंने अविस्मरणीय योगदान दिया। इनकी पहली रचना 1935 में प्रकाशित हुई, अंतिम 1990 में लगभग दो दर्जन कृतियां आज भी प्रकाशनाधीन है। गाजीपुर का इतिहास जैसी दुर्लभ पुस्तक है, हिंदी भाषा के शुद्धिकरण के लिए हृदेयश जी का वैसा ही प्रयास था, जैसा काशी में महावीर प्रसाद द्विवेदी का इन्होंने शांति वार्ता के लिए स्थापित पीकिंग यात्रा में इंटर पेटेंट दुभाषी की भूमिका का निर्वाह किया।
हृदेयश जी बहुभाषी थे। हिंदी संस्कृत बांग्ला अंग्रेजी फारसी उर्दू पर इनका समान अधिकार था। मुख्य वक्ता राम अवतार ने कहा कि स्वतंत्रता के संचार इन्हें अपने दादा संगम राय से विरासत में मिला था। विद्यार्थी जीवन में स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण इन्हें स्कूल से निकालने का आदेश हुआ था। इनकी कुशाग्र को देखते हुए प्रिंसिपल एल राय ने जुर्माना भर का इन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित किया। शिक्षक होने के कारण पुलिस की निगाह से बचते रहे। हृदेयश जी पत्रकारों के लिए निर्भीकता, निष्पक्षता और ईमानदारी तीनों गुण आवश्यक मानते थे। कहते थे पत्रकारों के लिए स्वावलंबी होना भी जरूरी है। वह ‘नेशनल हेराल्ड’ सहित दर्जनों पत्रों के स्थानीय संवाददाता रहे। उनकी दृष्टि में कोई मनुष्य बड़ा है, न छोटा है। सत्य -सत्य, महाप्रकाश, शंख पुष्प और नवदीप चार महाकाव्यों सहित गाजीपुर का इतिहास, भोजपुरी भाषा की पहली सतसई जैसी बहुमूल्य कृतियों की सृजन करके हिंदी साहित्य का संवर्धन किया है। उनका प्रचार- प्रसार होना चाहिए। उन पर स्वतंत्र पुस्तक आनी चाहिए शोध होना चाहिए। इसके बाद काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
वरिष्ठ कवि कामेश्वर द्विवेदी ने माई के अचरा के चंदन का वास बा, रचना सुनकर श्रोता भावुक हुए। अपनी अगली रचना “मुसलमान है या हिंदू है, इंसान है” के द्वारा इंसानियत का पाठ पढ़ाया, शायर अख्तर कलीम ने नफरत को अब वतन से मिटाने की बात कर, पहले वफा की राह पर तू हो जा फिर आए न किसी को दिखाने की बात कर, हास्य व्यंग शायद हंटर गाजीपुरी ने भाईचारे का संदेश देते हुए कहा लड़ाई-झगड़े से क्या मिलेगा, जो हो सके तो प्यार बांटो। समकालीन कवि सुरेश वर्मा ने हृदेयश जी के हवाले से सेनानियों को कुछ इस प्रकार नमन किया। “आओ कुछ काम की बातें करें, जिसने देश के लिए कुर्बान कर दिया, आओ उसके कुर्बान की बातें करें।” अनंत देव पांडेय ने बिना मात्राओं की रचना “हर स्तवन का हर-हर आते हुए.. ओजस्वी पाठ किया। कार्यक्रम की संयोजिका श्रीमती गिरिजा राय उनके स्वाभिमानी सहज एवं समदर्शी जीवन शैली का इस्तेमाल किया। कार्यक्रम में पूर्व सभासद संजय वर्मा, हिमांशु राय, डॉ पुष्पा राय, मंजुला सिंह, शुभा राय, सुनीता पाल, अतुल शर्मा ने भी विचार व्यक्त किया। कार्यक्रम संचालन डॉ. रिचा राय ने किया।