सियासी मैदान : भाजपा को “भानुमती” की तलाश…

दल में दल-बदल की राजनीति से भाजपा नेताओं के होश उड़े..
बलिया/लखनऊ।
“कहीं की ईट कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा” यह मुहावरा विस चुनाव के वक्त काफी असरदार साबित होता है। लेकिन पिछले विस चुनाव में “भानुमती” की भूमिका निभाने वाले नेता स्वामी प्रसाद मौर्या ने दल से किनारा कर लिया है। अब कुनबे को जोड़े रखने के लिए “भानुमती” के रोल में नए विकल्प तलाशे जा रहे हैं.।
विधानसभा चुनाव- 2022 की तारीख भी तय हो चुकी है। समय कम है। सत्तारूढ़ दल भाजपा भी उम्मीदवारों के पत्ते खोलने को तैयार है। लेकिन टिकट को लेकर पार्टी में अंतरविरोध जारी है। ऐसे में मनमाफिक सीट व इज्ज़त न मिलने पर दल में दल-बदल एवं उछल- कूद देखा जा रहा है। बड़ी पार्टी होने के नाते यहां सबसे अधिक नेता नाखुश हैं। अपने फायदे के लिए पद से इस्तीफा देना व दूसरे दल में शामिल होना आम बात हैं। सफेदपोशों के लिए कुछ भी नया नहीं है, चुनाव के वक्त ऐसा अक्सर होता है। लेकिन यह भाजपा के लिए शुभ संकेत नहीं है। कुनबे को सही रखने के लिए भाजपा ने “भानुमती” की जिम्मेदारी एक डिप्टी सीएम को दी थी, लेकिन वह कुनबा जोड़ने व सलामत रखने में असफल साबित हो रहे हैं। अलग-अलग विचारधारा रखने वाले लोगों को एक जगह एकत्र करना आसान भी नहीं है। विधानसभा चुनाव तक भारतीय जनता पार्टी में कौन रहेगा और कौन जाएगा यह बताना मुश्किल है ?
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी में शामिल होने वालों की कतार लंबी थी। पांच साल तक खूब मक्खन-मलाई काटने और चाटने के बाद अब नेतागण अपने फायदे की सोचने लगे हैं। ऐसा करना कोई गुनाह भी नहीं है। क्योंकि पार्टियां भी अपने फायदे के हिसाब से ही लोगों का चयन करती हैं। भाजपा के लिए इतना ही कहा जा सकता है कि “कभी घी घना, कभी मुट्ठी चना” अब जो रह जाए व साथ दे उसी में संतुष्ट रहना होगा। दल में दिग्गजों के दलबदल से अब “कागा चले हंस की चाल” भाजपा के गुणहीन कहे जाने वाले नेता भी जिम्मेदारी पाकर गुणवान व्यक्ति की भांति व्यवहार करने लगे हैं। वर्तमान हालत को देख राजनीतिक पंडित यह कहने लगे हैं कि कोई भी बड़ी पार्टी क्यों ना हो, लेकिन वह ज्यादा दिन तक तभी सत्ता में रह सकती है जब प्रजा (जनता) संतुष्ट और सुखी रहे। सत्ता (दल) में योग्य व्यक्ति को उचित इज्ज़त व स्थान दिया जाए। क्योंकि “काठ की हाँड़ी बार-बार नहीं चढ़ती” चालाकी से किसी तरह एक ही बार काम निकाला जा सकता है। बार-बार नहीं। ऐसे भी नेताओं को सीट न मिले तो उन्हें चुनावी मेला उदास लगता है। जैसे “कौड़ी न हो पास तो मेला लगे उदास” पद और धन के अभाव में राजनीति करने वालों के जीवन में कोई आकर्षण नहीं होता।
अब विधानसभा चुनाव सामने हैं ऐसे में कई प्रमुख दलों की स्थिति “खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे” जैसे हो गई है। उनकी बात को तवज्जो न देने वाले नेता व मंत्री का वह कुछ बिगाड़ नहीं पा रहे हैं। अब केवल लज्जित होकर क्रोध करना ही उनके हिस्से में बचा है। दलबदल की राजनीति में रोजाना एक के बाद दूसरा और दूसरे के बाद तीसरा पार्टी छोड़ रहा है। पद से इस्तीफा का दौर भी जारी है। यह कहना गलत नहीं होगा कि “खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग पकड़ता है” एक को देखकर दूसरा भी वही करने पर आमादा है।
यूपी विधानसभा चुनाव से पहले दल-बदल की सियासत तेज हो गई है। हर पार्टी अपना खेमा मजबूत करने में जुटी है। इसका फायदा नेता भी उठाने में लगे हैं। वह बेहतर मौके की तलाश में हैं। मौका मिलते ही पाला बदल की राजनीति करने में देर तक नहीं करते। चुनाव से पहले विशेषकर भाजपा को कई बड़े झटके लग चुके हैं। इसी कड़ी में भाजपा की रीढ़ कहे जाने वाले स्वामी प्रसाद मौर्य ने यूपी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया है। वह आने वाले दिनों में साइकिल पर सवार होने की घोषणा भी कर चुके हैं। सूत्रों की माने तो स्वामी प्रसाद मौर्य के बाद दो मंत्री और करीब 10 बीजेपी विधायक ऐसे हैं, जो बहुत जल्द सपा में शामिल हो सकते हैं। इन्हें मनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी की ओर से कोशिश जारी है।इसका जिम्मा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को दिया गया है। देखा जाए तो इसके पूर्व भी करीब 18 बड़े बीजेपी नेता दल छोड़कर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर चुके हैं।
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सपा में शामिल होने वाले कद्दावर नेताओं में..
1. स्वामी प्रसाद मौर्य, कैबिनेट मंत्री व बीजेपी विधायक।
 2. बृजेश गौतम, अलीगढ़
 3. दीपक विग, नोएडा
 4. इंद्रपाल, पूर्व विधायक, औरेया
 5. अरविन्द गुप्ता, फ़र्रूखाबाद 
 6. कृपाशंकर पटेल, भगवंतनगर, उन्नाव
 7. राहुल लोधी, रायबरेली 
 8. एच एन पटेल, मऊ 
 9. त्रयंबक पाठक, बस्ती 
10. श्रीराम भारती, पूर्व विधायक, मिर्जापुर।
11. हेमंत निषाद, आगरा।
 12. राकेश राठौर, बीजेपी विधायक, सीतापुर।
 13. जय चौबे, विधायक बीजेपी, संतकबीरनगर।
 14. माधुरी वर्मा, विधायक, बीजेपी, नानपारा, बहराइच।
 15. आरके शर्मा, विधायक, बीजेपी, बिल्सी, बदायूं।
 16. रमाकान्त यादव, पूर्व सांसद, बीजेपी, आजमगढ़।
 17. शिवशंकर सिंह पटेल, बुंदेलखंड।
 18. राकेश त्यागी, पूर्व मंत्री बुलंदशहर।
 19. उत्तम चंद्र राकेश, यूपी अध्यक्ष अखिल भारतीय लोधी महासभा।
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