मंगल कलश निकालने की परंपरा सनातन धर्म की है..

108 कुंडाक गायत्री महायज्ञ जारी..
बलिया। महावीर घाट स्थित गायत्री शक्तिपीठ के प्रागंण में चल रहे 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के दौरान देव संस्कृत विश्वविद्यालय शांतिकुंज हरिद्वार के एसोसिएट प्रोफेसर डा. गायत्री किशोर त्रिवेदी ने कहा कि यज्ञ प्रारंभ करने से पूर्व मंगल कलश निकालने की परंपरा हमारे सनातन धर्म की है। यह किसी देवालय, सरोवर या नदी से जल भरकर निकाला जाता है। इसका उद्देश्य है धर्म के प्रति सभी एक हों, विशेष रूप से नारियों को एक करने का अनुपम प्रयोग है।

समाज की खुशहाली के लिए नर-नारी दोनों की जरुरत पड़ती है। अकेले दोनों ही अपूर्ण है।अपूर्णता में पूर्णता का प्रतीक है। कलश यात्रा किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए सभी जाति संप्रदाय की आवश्यकता होती है।जब तक हम सभी एक नहीं होंगे, समाज के कार्यों को हम पूर्ण गति नहीं दे सकते। इसीलिए इस कलश यात्रा का धार्मिक मान्यता दी गई है। कलशधारण करने वालों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य शरीर और मन में शुभ संकल्प का जागरण होता है। इस दौरान संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी, दिनेश पटेल, दयानंद शिववंशी, मनीष जी और भूषण जी विभिन्न सजों के जरिए उनका साथ दिया।

बलिया। मां गायत्री के वार्षिकोत्सव के अवसर पर चल रहे 108 कुंडीय गायत्री महायज्ञ के दौरान हरिद्वार से आज संगीत के आचार्य श्रीहरि चौधरी ने धर्म कार्यो की महत्ता बताते हुए।संगीत के जरिए लोगों को सार्थक व ज्ञान वर्धक संगीत सुनाया।कहा कि आया बुढापा जब जानी, दगा दे गई जवानी।
पहला बुढापा तेरे बालों में आया,
दूसरा बुढापा तेरे आखों में आया,चस्मा की हो गई मेहरबानी।
तीसरा बुढापा तेरे कमर में आया,
लाठी की हो गई मेहरबानी। दगा दे गई …।
चौथा बुढापा तेरे दातों में आया,
नकली दातों की हो गई मेहरबानी दगा दे गई जवानी।
अइल कुछ ना कइल,ई हो देहिया ताहर जिन्दगी के भार हो जाई ।जैसे प्रेरणादायक संगीत सुनाकर मत्रमुग्ध कर दिया।इस दौरान श्रोता तालियां बजाकर झूमते रहे।

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