वेदना : इनकी आंखों में क्यों नहीं आते आंसू..?


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राष्ट्रीय राजमार्ग पर जगह-जगह कायम है मौत का कुआं..
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बलिया। इंसानों को जानवरों से अलग करने वाली चीज़ों में आंसू भी है। जी हां केवल इंसान ही भावुक होकर आंसू बहा सकता है। चोट लगने और दु:खी होने पर भी आंसू आते हैं। सवाल है कि हमारे जनप्रतिनिधियों, अधिकारियों और छोटी-छोटी बातों पर झंडा बुलंद करने वाले समाजसेवियों की आंखों से आंसू क्यों नहीं आते ? क्या सभी संवेदनहीन है या इन्हें दर्द से तड़फड़ा रही जनता की समस्या दिखाई नहीं देती ? एकबार फिर हम बात कर रहे हैं उसी समस्या की, जो लंबे समय से नगरवासियों के लिए नासूर बनी हुई है।
देखा जाए तो राष्ट्रीय राजमार्ग-31 पर जगह-जगह मौत का कुआं कायम है। शहर हो या गांव लोग सड़क समस्या से जूझ रहे हैं। नगर की सड़कों को लेकर कई बार उग्र आंदोलन कर चुके वरिष्ठ अधिवक्ता व समाजसेवी मनोज कुमार हंस के नेतृत्व में सोमवार को भी अफसरों का घेराव किया गया। पूर्व में अधिकारियों ने आश्वासन दिया था कि 25 अक्टूबर तक शहर की सभी सड़कें दुरुस्त कर दी जाएंगी, लेकिन वादा झूठा निकला। इससे आक्रोश और बढ़ने लगा है।
नगर के मालगोदाम स्टेशन रोड से लेकर भृगु आश्रम तक राष्ट्रीय राजमार्ग की हालत अतिदयनीय है। सतीश चंद चौराहे पर करीब 150 मीटर तक अब भी सड़क पर पानी भरा हुआ है। यहां गड्ढों का सही अंदाज न होने से बाइक सवार आए दिन दुर्घटना के शिकार हो रहे हैं। यह सड़क पूरी तरह टूट चुकी है। इससे निकलना जान जोखिम में डालना है। जबकि इस मार्ग पर पहली बार आने -जाने वाले चार पहिया वाहन चालक पानी भरे विशाल गड्ढों में फंस जा रहे हैं। इन गड्ढों से निकलना भी मुश्किल हो जा रहा है। हद है..सबकुछ देखने और जानने के बाद भी किसी की आंखें नहीं रोती। आंसू अगर आते भी हैं, तो केवल राहगीरों को, एनएच से होकर गुजरने वाले भारी एवं हल्के वाहन चालकों को, नगरवासियों को, आस-आस रहने वाले लोगों को तथा समस्या को लेकर चिंतित रहने वाले चंद लोगों को।
“डार्विन ने कहा है कि भावुकता के आंसू सिर्फ़ इंसान ही बहाते हैं, तो क्या यहां इंसानियत मर चुकी है, क्या सरकारी सिस्टम अंधेपन और बहरेपन का शिकार है ? जनप्रतिनिधियों को इंसान की सुख सुविधाओं से कोई लेना-देना नहीं है। सतीश चंद चौराहा के निकट रहने वाले शिक्षक नेता अजय मिश्र, अजय, विशाल, पुनीत एवं राकेश ने कहा कि यह सत्य है कि मुर्दों में जान नहीं डाली जा सकती। जनता के चिल्लाने का उन पर कोई असर नहीं होगा। ऐसे में हम सिर्फ अपना रोना रो सकते हैं। हकीकत यह भी है कि रोना उसी को पड़ेगा, जो दिक्कत में है। औरों की आंखों से आंसू नहीं निकलेंगे। वह चाहकर भी उदास नहीं हो सकते और न रो सकते हैं। समस्या कितनी भी बड़ी हो उनकी आंखें नहीं रोएंगी, वही रोज आंसू बहाएंगे, जो जूझेंगे। सबको रोने की वजह चाहिए। इस समय रोने का वक्त नगरवासियों का है। क्योंकि पत्थर दिल इंसान के आंखों को आंसू नहीं आते..।

एनएच-31 व अन्य सड़कों की बदहाली को लेकर घेराव..
बलिया। राष्ट्रीय राजमार्ग एवं नगर की बदहाल सड़कों को लेकर सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता एवं समाजसेवी मनोज कुमार हंस ने पूर्वांह्न लगभग 11 बजे मुख्य राजस्व अधिकारी (सीआरओ) का घेराव किया। उनका कहना है कि जिलाधिकारी आदिती सिंह एवं मुख्य राजस्व अधिकारी ने 25 अक्टूबर तक राष्ट्रीय राजमार्ग के मरम्मत सहित नगर के सभी सड़कों को दुरुस्त कराने का वादा किया था। एनएच- 31 की दशा सुधारने के बजाय और बिगड़ गया है। अधिकारियों की असंवेदनहीनता के कारण नगरवासी जान जोखिम में डालकर राष्ट्रीय राजमार्ग सहित नगर की सड़कों से गुजर रहे हैं। कहा कि नगर में दर्जनों नाले अभी भी जाम हैं। पानी का निकास न होने से एक हिस्सा जलजमाव से जूझ रहा है, तो दूसरा सड़क की बदहाली से। नगर में हर तरफ त्राहि-त्राहि मची हुई है। काजीपुरा में भी लोग किसी तरह जीवन यापन कर रहे हैं। लेकिन कोई सुधि लेने को तैयार नहीं है। आलम यह है कि नाला व नाली जाम होने की स्थिति में जितना पानी किसी तरह से सूख रहा है। कहीं उससे ज्यादा गंदा पानी लोगों के घरों से बाहर निकल रहा है ऐसे में जलजमाव से छुटकारा पाना कठिन है।
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